Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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श्रद्धांजलि-पत्र
आज वे नहीं होकर भी हैं और रहेंगे
प्रो० कल्याणमल लोढ़ा
२ए, देशप्रिय पार्क ईस्ट कलकत्ता-७०००२६
६.२.६२
प्रिय बन्धु,
अभी-अभी 'प्राचार्य गुरु हस्ती महिमा' स्तुति [संकलनकर्ता : श्री जवाहरलाल बाघमार] लघु स्तवन पुस्तिका मिली । ज्योंही इसे खोला, मेरी दृष्टि इस वाक्य पर पड़ी जिनके विमल प्रताप से हुआ हिताहित ज्ञान' और फिर स्मरण आया कि अरे ! पूज्य आचार्य श्री के निर्वाण दिवस को प्रायः एक वर्ष हो गया, केवल दो मास ही बाकी हैं। समय प्रतिक्षण भाग रहा है, उसकी द्रुतगति हमें पीछे, बहुत पीछे ढकेल रही है। 'शिव महिम्न स्तोत्र' मे कहा गया है 'नास्ति तत्त्वं गुरो परम्'-गुरु से श्रेष्ठतर कोई तत्त्व नहीं है। वही परम तत्त्व है-वही हिताहित का ज्ञान कराने वाला । हमारे प्राचार्य श्री ने भी हमें कहा था सही, पर हम उसे कहाँ तक जीबन में उतार पाए, रख पाए ?
एक प्रसंग याद आ रहा है। महात्मा गांधी को सियाराम शरण गुप्त अपनी कृति 'बापू' की वे पंक्तियाँ सुनाने लगे 'तेरे तीर्थ सलिल से प्रभु यह मेरी गगरी भरी भरी।' इसे सुनकर महादेब देसाई हँस पड़े। पूछने पर सटीक उत्तर दिया 'तीर्थ जल से गगरी तो भरी तो सही, पर उसमें जल रहा कितना ? कहीं ऐसा तो नहीं कि गगरी के किसी अज्ञात छिद्र से भरा हुआ तीर्थ जल बराबर बाहर निकल रहा हो' पते की बात है । सोचता हूँ-हमने भी पूज्य आचार्य गुरुदेव के श्री चरणों में बैठकर 'सामायिक स्वाध्याय महान' का संदेश सुना, अपने जीवन के लक्ष्य का संधान पाया, हिताहित का ज्ञान, मांगलिक उज्ज्वल चारित्र की महिमा-बहुत कुछ, पर वह कितना, कहाँ और कैसे जीवन में विद्यमान रहा ! 'ऋग्वेद' कहता है 'पारैक पन्थां यातवे सूयभि, अगन्म यत्र प्रतिरन्त आयुः।'
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