Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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• प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा.
मोह, मान, ममत्व सभी स्वतः समाप्त होते हैं । फ्राइड ने मनुष्य की दो आकांक्षानों को ही तो मूल गिना था-इरोस-जीवेषण और थानाटास-मरणेच्छा । समाधि मरण इन दोनों से परे है-न तो जीवन की इच्छा है और न मरण की। उस दिन पूर्वाह्न में आचार्य श्री की शांत मुद्रा को देख कर लगा था कि कैसी अलभ्य शांति है-यह । ईसा मसीह ने कहा था, जो अपने को बचायेगा, वह मिट जाएगा । जो मिट जाएगा, वह बच जाएगा । यहाँ जीवन अकूल हो जाएगा। सीमाएँ मिट जाएँगी। समता का अमृत तत्त्व प्राणों में प्रवहमान होगा।
अाज विज्ञान ने जिस सृष्टि-ऊर्जा का अनुसंधान-अन्वेषण किया है-वही मानवीय जीवन में परमोच्च है । प्रकृति के पेड़-पौधों से लेकर चराचर जगत् में ऊर्जा सतत प्रवहमान है। रूस के किरलिमान ने अपनी फोटोग्राफी की हाई फ्रिकवेंसी विकसित की। मनुष्य के हाथ के चित्र के साथ उसके परिपार्श्व में फैली हुई किरणें भी चित्र में आती हैं-आसपास के विद्युत जाल (मेगनेटिक फील्ड) का भी चित्र आता है। विक्षिप्त, निराश, निषेधात्मक विचारों और कुप्रवृत्तियों से भरे मनुष्य का चित्र भी अराजक, दूषित और रुग्ण होता है । इसके विपरीत शुभ भावनाओं और सदाचार का चित्र लयबद्ध, सुन्दर और सानुपातिक होगा । वैज्ञानिकों का कहना है कि जीव और अजीव में केवल एक ही भेद है आभा-मंडल का । जो जीवित है उसके पास आभा-मंडल है। उसकी क्षीणता मृत्यु के समय होती रहती है पर महान् मनुष्यों का आभा-मंडल यों ही निःशेष नहीं होता । सत्पुरुषों का आभा-मंडल व्यापक होता है । आचार्य श्री के अन्तिम समय में यह आभा-मंडल जैसे स्पष्ट रूप से भासित हो रहा थाआलोक किरणें प्रसारित हो रही थीं। यह चमत्कार नहीं, वैज्ञानिक सत्य है । भाव-जगत् के रहस्य और मंगल व लोकोत्तम सूत्र स्वतः स्पष्ट थे।
जो जीवन में महान् रहा-आदर्श का मूर्त रूप श्रमण संस्कृति का उज्ज्वल प्रतीक-वही महाप्रयाण के समय भी वैसा । प्रात्म-सिद्ध । यही तो मनुष्य जीवन की विशेषता है 'विदत् स्व ज्योतिर्मन वे ज्योतिरार्थम्' मनुष्य को यही दिव्य ज्योति मिली है । सचमुच आचार्य श्री ज्योतिष्पुंज थे । भारतीय मान्यता है कि जव दुर्लभ देवात्माएँ पृथ्वी पर आती हैं और जव ये प्रयाण करती हैं, तब पृथ्वी से लेकर आकाश पर्यन्त एक विचित्र दिव्यता व्याप्त हो जाती है। भारतीय मनीषियों ने इसका विभिन्न-रूपेण वर्णन किया है-आचार्य श्री के जन्म और प्रयाण के समय यदि मलयानिल रहा हो, यदि आकाश ने वृष्टि की हो, पृथ्वी ऋषिगंध से पूर्ण हुई हो, यदि मेघमालाओं ने छाया दी हो, और दी थी, तो यही स्वीकार करना पड़ेगा कि एक दिन उनकी देवात्मा ही पृथ्वी पर अवतरित हुई थी और उसी ने महाप्रयाण भी किया। उनका जीवन जिन सत्संकल्पों और प्रादर्शों से परिपूर्ण रहा, जिसमें कोमलता, करुणा का अजस्र प्रवाह बहता रहा
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