Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
View full book text
________________
[ १ ]
जब एक तारा जगमगाता
प्रथम वैशाख सुदी अष्टमी,
रविवार, पुण्य नक्षत्र ।
खटका राजस्थानी
जब एक तारा जगमगाता, टूट करके गिर गया था।
तमस कुछ गहरा हुआ, लगा समय भी ठहरा हुआ । सांझ आँसू ढालती थी, सिसकियों को पालती थी । गगन पल-पल रो रहा था, चाँद बोझिल हो रहा था ।
हर अश्रुपूरित नैन था,
हर हृदय भी बेचैन था ।
हुई आत्मा वह लीन थीं, देख दुनिया यह गमगीन थी ।
हस्ती मस्ती में थे सोये,
और सब थे खो-खोये ।
मंद सारे साज थे,
सब जा रहे निमाज थे ।
जिन रत्न अद्भुत खो गया,
औचक यह क्या हो गया ?
दो कविताएँ
प्रथम पुण्य तिथि पर मेरी, लीजिए गुरु-वन्दना,
• कीजिए इस विश्व की, दूर सारी ऋन्दना |
Jain Educationa International
- कवि कुटीर, विजय नगर - ३०५ ६२४
[ २ ] पूजित हुए तप-कर्म
[] श्री प्रेमचन्द रांका 'चकमक' युगों-युगों से पूजित, होते आए संत सदा है । तप-त्याग का कीर्तिस्तंभ, बने, वही संत यहाँ महा है । किया सदा पर उपकार, धरा सच धन्य हो गई । पाकर आचार्य प्रवर के चरण, सदा के लिए उरण हो गई । थे चलते-फिरते तरु, दया की धाम बन गए । आगमज्ञाता शास्त्रज्ञ, सच में अवतार बन गए । जो भी गया गुरु शरण, उसके कष्टों का किया वरण । आप गुणों की ये खान, जग वन्दनीय हुए चरण । जब तक रहेगा नाम, सितारे और चन्द्र रहेगा । परहित की गाथा तो, हर डगर हर ग्राम कहेगा । आपकी गाथा गाएं- लिखें, रोशनाई इतनी कहाँ है ? पूजित हुए तप कर्म किया, गूंजा जग में नाम आप महा हैं । जिस ठौर आपके पड़े,
चरण रज बनी पूजित है । चढ़ाली जिसने निज मस्तक, पूंजी जैसे की अजित है । 'चकमक' झुकाता निज शीश, कोटि-कोटि बार आपके । बंधन कटते जपने से नाम, कटते भवों के कर्म श्राप के ।
- गुलाबपुरा (भीलवाड़ा) राज.
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org