Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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गजेन्द्र सप्तक
। श्री रिखबराज कर्णावट हस्ती तेरा नाम है, केवलजी के लाल । आठ दशक पहले हुए, रूपा माँ के बाल ।। रूपा माँ के बाल, पिता ने साया छीना । फिर भी ऊँचा भाल, धीरज माता को दीना ।। यह संसार असार, नहीं है कोई बस्ती। लेवें संयम धार, कहा माता से हस्ती ।। १ ।। एक दशक की आयु में, शोभा गुरु को पाया। दीक्षा ली अजमेर में, सबका मन हर्षाया ।। सब का मन हर्षाया, देख नन्हा सा बालक । बोल उठे सब लोग, बनेगा यह संचालक ।। है तेजस्वी बाल यह, इसमें मीन न मेख । जन-जन की यह वाणी, ऐसा लाखों में एक ।। २ ।। बुद्धि देख बाल मुनि की, संत पड़े अचरज में । शोभा गुरु की दिव्य दृष्टि, परख रही पल-पल में ।। परख रही पल-पल में, दिया ज्ञानामृत जम कर । पाँच वर्ष के काल में, भरा कोष अजित कर ॥ पाकर के विश्वास, गुरु शोभा दीना लेख । घोषित भावी पूज, श्री संघ ने बुद्धि देख ।। ३ ।। बीस वर्ष के होते ही, चमके भानु समान । भाषा आगम शास्त्र का, भरा अनोखा ज्ञान ।। भरा अनोखा ज्ञान, चतुर्विध संघ ने ठाया। आचार्य पद देकर, जोधाणे आनन्द छाया ।। पाया चहुँ दिशि यश, दिग्गज संतों सी अदा। दिया ज्ञान का रस, देश भ्रमण करके सदा ॥ ४ ॥ अनेक ग्रन्थ पागम लिखे, लिखा जैन इतिहास । ज्ञान क्रिया थी अति प्रबल, आचार्यों में खास ॥ आचार्यों में खास, फैलाया स्वाध्याय संघ । फैली सुगन्ध सुवास, प्रेम समन्वय के रंग ।। व्यसन निवारण काज, नगर ग्रामों में जझे। अहो गरीब नवाज, दीन हरिजन भी पूजे ।। ५ ।।
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