Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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• प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा.
• २१
महिमा अापकी सबसे महती। जय गुरु हस्ती महा उपकारी। भीड़ सदा भक्तों की रहती ।।२१।। पल-पल याद करें नर-नारी ।।३१।। रचे ग्रन्थ इतिहास पुराने। वर्ष इकहतर संयम पाला। एक-एक से बने सुहाने ।।२२।। जिनशासन का किया उजाला ॥३२॥ जैन-जगत के दिव्य दिवाकर। जीवन अपना अन्तिम जाना। रत्न वंश के गुण रत्नाकर ॥२३॥ हर्षित हो संथारा ठाना ॥३३॥ धर्म-क्रांति का बिगुल बजाया। आत्म-शक्ति अनुपम बतलाई । सोए हुए लोगों को जगाया ॥२४॥ अमिट कहानी एक बनाई ।।३४।। सच्चे साधक थे महाज्ञानी। आठम सुद बैसाख की जानो। अनुपम योगी प्रातम ध्यानी ॥२५।। रवि पुष्य का योग बखानो ॥३५।। भक्तों के भगवान थे प्यारे। गांव निमाज में स्वर्ग सिधाया । जन-जन के थे एक सहारे ॥२६॥ तेरह दिन संथारा आया ॥३६।। परम दयालु करुणाधारी। जब तक नभ में चाँद सितारे । मरता नाग बचाया भारी ॥२७॥ गुण गायेंगे सभी तुम्हारे ॥३७॥ सूर्य समान हुए तेजस्वी। जय गुरु हस्ती बोलो भाई।। जग में चमके बने यशस्वी ॥२८॥ नाम जपत सब विघ्न नसाई ।।३।। हा न होगा ऐसा योगी। जय गुरु हस्ती दीन दयाला। लाखों में थे संत सुयोगी ।।२६।। जपते आपके नाम की माला ॥३६।। जिसने तेरा लिया सहारा। आयो गुरुवर फिर से प्रायो। टल गया उसका संकट सारा ।।३०॥ पथ भूलों को राह दिखाओ ।।४०।।
जो नर यह चालीसा गावे ।
सुख, शांति, मंगल वह पावे ।।४१।। 'मुनि गौतम' गुरुदेव का, धरे हृदय में ध्यान । . 'हस्ती चालीसा' कही, देना मुझको ज्ञान ।। जो यह चालीसा पढ़े, लगन सहित चित्त लाय । गुरु हस्ती मेहर करे, ता को सुख उपजाय ।।
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