Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ आभीरों की मुखाकृति द्रविड़ नहीं, सीरियन है। हो सकता है कि आभीर नामक द्रविड़ जाति का धर्म भक्ति-प्रधान हो एवं देवता बालकृष्ण हो और बाद में सीरियन जातियाँ आकर इनका धर्मग्रहण करके अपने आपको आभीर कहने लगे हो।६।। ___हरिवंश पुराण में आभीरों के बालदेवता श्री कृष्ण का वर्णन मिलता है। इन्हीं आभीरों द्वारा कृष्णवंश की समाप्ति पर उस वंश की स्त्रियों को अर्जुन द्वारा द्वारिका से कुरुक्षेत्र ले जाते समय आक्रमण किया गया था। ये लूटेरे म्लेच्छ माने गये हैं जो पंचनद में रहते थे। कई विद्वान् इनका विस्तार मथुरा के निकट महावन से लेकर द्वारिका के पास अनूप तथा आनर्त देश तक बताते हैं। वायुपुराण में भी आभीरों के राज्यवंश का वर्णन मिलता है। इनके दस राजाओं का वर्णन 9 . विष्णुपुराण में इन्हें कोंकण तथा सौराष्ट्र का निवासी बताया गया है। सौराष्ट्र में पायी जाने वाली लिपि से शकसंवत् 112 के आसपास वे राज्य करने लगे थे। कई विद्वान आभीरों का मूलस्थान भारतवर्ष ही मानते हैं। ईसा के पूर्व भी आभीर भारतवर्ष में थे परन्तु गोपाल कृष्ण व बालकृष्ण की कथाओं का वासुदेव में समावेश आभीरों के द्वारा ही हुआ है। डॉ० मलिक मोहम्मद का कथन यहाँ उल्लेखनीय है कि "आभीर जाति वास्तव में तमिल प्रदेश. की आयर जाति है। आयर का अर्थ ग्वाला होता है। तमिल में "आ" गाय को कहते हैं। पुराणों में इन्हें आभीर कहा गया है। तमिल साहित्य के संघपूर्ण काल की रचना तौलकाप्पियम् (ई०पू० पाँचवीं सदी) तथा संघकाल ईसा के दूसरी सदी तक की रचनाओं में तमिल प्रदेश के विभिन्न अधिदेवताओं तथा भू-भागों का वर्णन मिलता है। मुल्ले प्रदेश (वन भूमि) में गोचारण का व्यवसाय करने वाले आयर कहे जाते थे। इन ग्वालों के देवताओं का नाम मायोन था। वे मायोन आयरों के बाल देवता थे। इन बाल देवताओं सम्बन्धी अनेक कथाएँ प्रचलित थीं। जिनका वर्णन संघसाहित्य में मिलता है। आयर लोग अपने बाल देवता के बाल जीवन सम्बन्धी कथाओं के आधार पर नृत्य भी करते थे। 167 तमित के मायोन का वैदिक विष्णु और महाभारत के कृष्ण के साथ समन्वय :___. ईसा से शताब्दी पूर्व ही भारत के आर्य, प्राचीन तमिल प्रदेश में गये। आर्यों के साथ महाभारत द्वारा प्रचलित भागवत धर्म भी वहाँ गया। इस प्रकार वैदिक संस्कृति का तमिल संस्कृति के साथ समन्वय हुआ। उत्तर से दक्षिण प्रयाण करने वाले लोग अपने साथ वैदिक ग्रन्थ-वेद, उपनिषद्, रामायण, महाभारत, गीता आदि के विचार भी ले आये। उनके साथ कृष्ण कथा भी दक्षिण गई। वह वासुदेव कृष्ण की कथा थी, उसमें बालकृष्ण का रूप नहीं था। जब दो संस्कृति का मिलन हो गया, तमिल प्रदेश के वैदिक परम्परा से भिन्न देवताओं का वैदिक देवताओं के साथ एकीकरण हो गया। तमिल लोगों के मायोन, मुरुगन, काइवै, शिवन आदि का वैदिक देवताओं से मिलन हो गया। मुल्ले प्रदेश के बालदेवता मायोन का वैदिक विष्णु से साम्य होने के कारण मिलन हो गया।