Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ माया के इस दूसरे स्वरूप का ही भक्तों ने विशेष वर्णन किया है। भक्ति मार्ग में यही माया बाधक है अतः इसकी घोर निन्दा की गई है। ___आचार्य वल्लभ. के अनुसार अविद्या माया को दूर करने का एकमात्र सरल उपाय "पुष्टि" है। भगवत् कृपा से ही व्यक्ति अविद्या के समस्त आवरणों से मुक्त हो जाता है। सूर ने इसी शुद्धाद्वैत के अनुसार माया के दोनों स्वरूपों का विशद वर्णन किया है। रमणेच्छु ब्रह्म अपनी अगाध शक्ति माया द्वारा सृष्टि का विस्तार करता है। सूर ने माया को अगाध-शक्ति बताया है, जिसकी गति सदा अविगत रहती है अवगित गति जानी न परै मन-वन-कर्म अगाध अगोचर कीतिविधि बुधिसंचरै। अति प्रचंड पौरूषबल पाए केहरि भूख मरै। अनायास बिन उद्यम कीन्है अजगर उदर भरै। रीतै-भरै भरै पुनि ढौरे चाहै फेरि भरै। राजा रंक ते रंक, राजा ले सिर छत्र धेरै। सूर पतित तरि जाउ छिनक में जो प्रभु नैकुं ढरै।३९ . यही अविद्या माया काम, क्रोध, लोभ, मोह, अज्ञान आदि अनेक मानसिक दुर्बलताओं . के सहयोग से जीव को सन्मार्ग से भटकाती रहती है। यह माया नहीं, भ्रान्ति है, जो . मर्कट की भाँति जीव को अनेक नाच नचाती है। माया नही लकुटि कर लिन्हैं, कोटिक नाच नचावै। दर-दर लोभ लागि लिये डोलत नाना स्वांग नचावे॥ महा मोहिनी मोहि आत्मा, अपमारगहि लगावै। ज्यों दूति पर वधू भौरिकै, लै परपुरुष दिखावै॥४० . माया मोहक स्वरूप का वर्णन करते हुए सूरदास कह रहे हैं कि-जिसकी सुन्दर दृश्यावलियाँ, मोहक-प्रपंच-प्रसार से जीवात्मा को गृह, धन, सन्तान, मित्र इत्यादि विभिन्न बन्धनों में बाँधता है। यही वह बन्धन है, जो परमात्मा के पास पहुँचने में बाधा उत्पन्न करता है। सूर ने इसे मोहिनी, भुंजगिनी कह कर पुकारा है। जिसमें ऋषि-मुनियों के तप नष्ट कर दिये और अपने रूप जाल में फंसाकर उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा। - हरि तेरी माया को न बिगौयौ। सो जोजन मरजाद सिन्धु की पल में रम बिलौयौ॥२ ... मनुष्य के मन में पाप की उत्पत्ति भी इसी माया के प्रभाव से होती है। यही माया तृष्णा है, जो जीव को जन्म-मरण के बन्धन में बांधती है। उसे तभी मुक्ति मिल % 3D -