Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ चित्रित हुआ है। हिन्दी साहित्य के कृष्ण भक्ति काव्य परम्परा में श्री कृष्ण का यही स्वरूप निरूपित हुआ है। इस परम्परा में "सूरसागर" महत्त्वपूर्ण है। जैन परम्परा के आगम साहित्य में कृष्ण चरित्र के विविध प्रसंग उल्लेखित है। इन्हीं प्रसंगों को उनके पौराणिक साहित्य में व्यवस्थित एवं विकसित रूप में वर्णित किया गया है। जिसमें "हरिवंशपुराण" सविशेष उल्लेखनीय है। पौराणिक साहित्य के पश्चात् भी इस परम्परा के विविध ग्रन्थों में कृष्ण चरित्र को वर्णित किया गया है। इस प्रकार कृष्ण चरित्र विविध सम्प्रदायों में, विविध भाषाओं में, विविध कालों में सर्वव्यापक बन गया है। __व्यक्तित्व की दृष्टि से आलोच्य कृतियों के दोनों कवि अतीव लोकप्रिय हैं। इन्होंने अपने सम्बन्ध में बहुत ही कम लिखा है। अतः उनका जीवन-वृत्त अनेक जनश्रुतियों से समाच्छन्न रहा है। उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर ज्ञात होता है कि दोनों भक्त कवि थे। जिनसेनाचार्य ने दिगम्बर सम्प्रदाय के पुन्नाट संघ से दीक्षा लेकर मुनि धर्म स्वीकार किया था तो महाकवि सूर वैष्णव परम्परा के पुष्टि सम्प्रदाय से दीक्षित हुए थे। जिनसेन के माता-पिता, जन्म स्थान, शिक्षा, इत्यादि की जानकारी उपलब्ध नहीं है परन्तु ये पुन्नाट संघ से दीक्षित थे तथा इनके गुरु का नाम कीर्तिषेण था, जिनकी अनुकम्पा से वे हरिवंशपुराण जैसे विशालकाय पौराणिक महाकाव्य का निरूपण कर सके, इसका स्पष्ट उल्लेख उनकी कृति में मिलता है। अब तक की प्राप्त जानकारी के अनुसार हरिवंशपुराण के सिवाय उनकी किसी दूसरी कृति की जानकारी नहीं मिली है। वल्लभ सम्प्रदाय से दीक्षित होने से पूर्व "सूर" कर्म, योग, ज्ञान, उपासना आदि में विश्वास करते थे। आचार्य वल्लभ ने अनुग्रहपूर्वक उनके दैन्य को दूर कर उन्हें सूरत्व प्रदान किया एवं श्री कृष्ण लीलागान का आदेश दिया। दोनों कवियों का जीवन उन्मुख रहा। दोनों ने अपनी-अपनी परम्परानुसार कृष्ण चरित्र का वर्णन कर अमर यश की प्राप्ति की। _ कृतित्व की दृष्टि से देखें तो दोनों कवियों का मुख्य वर्ण्य विषय एक रहा। जिनसेनाचार्य ने प्रबन्ध काव्य में श्री कृष्ण के सम्पूर्ण जीवन को बौद्धिकता के आधार पर नवीन दृष्टिकोण से निरूपित किया तो इस सम्बन्ध में सूर ने कृष्ण की बाल एवं यौवन लीलाओं पर भागवतानुक्रमेण क्रमबद्ध गेयपदशैली में मुक्तक रचना का निर्माण किया। दोनों कवियों की रचनाएँ भाव एवं काव्यत्व की दृष्टि से श्रेष्ठ रहीं। दोनों कवियों ने पूर्ववर्ती साहित्य से पर्याप्त रूप से प्रेरणा ग्रहण की। जिनसेनाचार्य जैन परम्परा के आगम साहित्य में वर्णित कृष्ण व्यक्तित्व के विविध प्रसंगों से प्रभावित रहे। उनके काव्य पर पूर्ववर्ती काव्य-धारा एवं काव्य-शैली का स्पष्ट प्रभाव रहा। इसी परम्परागत काव्य के आधार पर उन्होंने हरिवंशपुराण का निर्माण किया। सूर पर भागवत, नामदेव, जयदेव आदि का प्रभाव रहा। इन्होंने इसी परम्परा का निर्वाह कर समस्त पद साहित्य का निर्माण किया। - =377