Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 397
________________ संस्थाओं का उल्लेख इतिहास ग्रन्थों में नहीं मिलता, तब इसका महत्त्व इस दृष्टि से भी बढ़ जाता है। समाज व संस्कृति की बात करें तो इसमें जो वर्ण-व्यवस्था, विभिन्न संस्कार, लोगों का व्यवसाय, विवाह प्रसंग, वाद्य-यन्त्र, दहेज-प्रथा तथा परिवार व्यवस्था इत्यादि का वर्णन है। उसे जानना जरूरी है क्योंकि इसमें भारतीय गौरव छिपा है। सूरसागर में शासन-व्यवस्था, निरकुंश-शासन, दंडविधान, सैन्य व्यवस्था, युद्ध, गुप्तचर का भी वर्णन मिलता है। आर्थिक व्यवस्था के चित्रण में कवि ने वैभवशाली व्यक्तियों के प्रभाव, अर्थ का महत्त्व, भिक्षुक, कृषि तथा पशुपालन, व्यापार-वाणिज्य, वस्तु-विनिमय, हाट-बाजार, छोटे- मोटे रद्योग धन्धे इत्यादि को उल्लेखित किया है। इस प्रकार सांस्कृतिक अध्ययन की दृष्टि से भी इस ग्रन्थ की प्रासंगिकता कम नहीं है क्योंकि इसमें जो विशाल सामग्री उपलब्ध है, उसे जानना जरूरी है। ___ इस प्रकार पाँच सौ वर्षों के अन्तराल के बाद भी सूरसागर की प्रासंगिकता कम नहीं हुई है। कवि ने अपनी प्रतिभा के सहारे हमें ऐसी कालजयी कृति प्रदान की है कि जिसने देश-काल की परिसीमाओं को लांघकर मानवीय संवेदना के प्रांगण में अपना स्थान हमेशा सुरक्षित रखा है। आज भी अणु विस्फोट की घोर आत्मघाती आकांक्षाओं से कराहती दुनिया में सूरसागर में विरचित रास-लीला अनिर्वचनीय आनन्द प्रदान करने में सक्षम है। प्रेम की निश्छलता, विशाल हृदयों,की अंतरंगता, सामान्य व ग्रामीण जीवन की सहजता तथा संप्रेषणता, विश्वसनीयता के कारण सूरसागर न केवल अपनी अस्मिता को स्थिर रखने में सहायक हुआ है वरन् वह साहित्य की प्रासंगिकता पर उठाई गई समस्त आकांक्षाओं को भी निर्मूल सिद्ध करता है। निष्कर्ष : - दोनों ग्रन्थों का परवर्ती साहित्य पर प्रभाव, उनका महत्त्व तथा प्रासंगिकता इत्यादि पर विवेचन करने के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि दोनों ग्रन्थों का भारतीय संस्कृति में अभूतपूर्व योगदान है। आज के भौतिक युग में भी अनेक दृष्टिकोण से इनकी प्रासंगिकता यथावत् बनी हुई है। आज के सब तरह से अशांत तथा त्रस्त मनुष्य को ये ग्रन्थ असीम शांति प्रदान करने में सहायक हैं। दोनों ग्रन्थों का अपने-अपने क्षेत्रों में निश्चित एवं अतुलनीय प्रभाव पड़ा है। इस दृष्टि से सूरसागर का प्रभाव अपेक्षाकृत अधिक परिलक्षित है। जैन परम्परा में वर्णित सम्पूर्ण कृष्ण काव्य के लिए हरिवंशपुराण एक आदर्श काव्य ग्रन्थ सिद्ध हुआ है। उसी तरह हिन्दी साहित्य में वर्णित कृष्ण चरित्र के लिए सूरसागर। आचार्य जिनसेन एवं सूरदास की प्रेरणा से शताब्दियों बाद भी उनके ग्रन्थानुसार अनेक रचनाओं का निर्माण हुआ है, जो उनके काव्य के महत्त्व को उजागर करता है। =375

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