Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ ने अपनी कृति में लोक गीतों के सभी प्रचलित रूप व्यक्त किये हैं। लोकगीतों में जन्मगीत, लोरीगीत, मंगलगीत, होरीगीत, रसियागीत, कीर्तनगीत, विरहगीत, झूलनगीत इत्यादि प्रमुख हैं। ___ इस प्रकार जो कृति लोक जीवन की प्रशस्त भूमि पर संस्थित है तथा प्रकृति के सभी अनुरागों से रंजित है, जिसकी काव्य भूमि कवित्व, भावुकता तथा वैदग्ध्य के मंजुल समन्वय का उदाहरण है। जिसमें श्रृंगार के रसराजस्व के औचित्य का पूर्ण प्रदर्शन हुआ है, जिसमें वात्सल्य को रस की महिमा से मंडित किया गया है, ऐसे ग्रन्थ 'सूरसागर' को कृष्ण भक्ति काव्य परम्परा : महत्ता स्थान प्राप्त क्यों नहीं होगा? ___ क्या कथानक! क्या चरित्र! क्या रस! क्या रस-भाव! क्या कला-पक्ष!। सभी में एक विचित्र संतुलन तथा मौलिक संयोजन होने के कारण भी यह महत्त्वपूर्ण कृति है। यह लोक-हृदय का काव्य है, इसमें लोक की भाषा, लोक की संस्कृति है तथा लोक मंगल की भावना है। महाकवि सूर ने इसमें भक्ति तथा लोक संग्रह का अपूर्व समन्वय किया है। मानव हृदय को मोहित करने वाला कृष्ण चरित्र, मार्मिक स्थलों की पहचान, उत्कृष्ट कथा शिल्प आदि सभी दृष्टियों से यह ग्रन्थ हिन्दी साहित्य का सर्वश्रेष्ठ काव्य कहा जा सकता है। सूरसागर की प्रासंगिकता : __ प्रत्येक काव्य की प्रासंगिकता का एक समय-सन्दर्भ होता है तथा दूसरा परिवेश सन्दर्भ। प्रासंगिकता देश तथा काल दोनों में जनमानस के बदलते परिवेश में निर्णीत होती है। प्रश्न उठता है कि आज के भौतिक युग तथा तकनीकी युग में, सूरसागर की क्या प्रासंगिकता है? कहाँ तो वह "मैं नहीं माखन खायों" या "मैं तो चन्द खिलौना लेहौं" का हठी कन्हैया जिसमें चीरहरण, मान-लीला, दानलीला, रासलीला के रसभीने प्रसंग जो प्रेम के प्रगाढ़ तन्मय भाव से भरे हुए थे और कहाँ आज के आर्थिक, राजनैतिक दबाव के युग में टुकड़े-टुकड़े होते मानवीय संवेग तथा कहाँ सूरसागर में निरूपित विनय के समर्पित भाव। हमारी शंका स्वाभाविक है कि सूरसागर जैसे ग्रन्थ का सामयिक महत्त्व क्या है? ... ___अनेक विद्वानों ने अधुनातन समीक्षात्मक विश्लेषण एवं संश्लेषण किया है। कई विद्वानों ने सूरसागर को समाजशास्त्रीय अध्ययन के संदर्भ में देखा है जिसमें उस युग की सामाजिक, राजनैतिक जीवन शैली. परिलक्षित होती है। कई विद्वान् सूरसागर में वर्णित वात्सल्य रस विवेचन में सूर को बाल मनोवैज्ञानिक पाते हैं तो कई उसमें निरूपित श्रृंगार रस में आधुनिक यौन-मनोविज्ञान को। इस प्रकार अनेक दृष्टियों से सूरसागर का महत्त्व बढ़ता जा रहा है। लगभग पाँच सौ वर्ष पुराने इस काव्य ग्रन्थ में न केवल कृष्ण चरित्र का ही वर्णन हुआ है वरन् ऐसा वर्णन भी हुआ है जो भारतीय अस्मिता से सम्बन्धित है।