Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ दूसरी बात करें तो कथानायक का अधिनायकवाद एवं साम्राज्यवाद के खिलाफ विरोध करना भी कम महत्त्व नहीं रखता। अनेक यातनाएँ सहकर भी उनका जनवादी संगठन कभी निरस्त नहीं होता। श्री कृष्ण इसी विचार श्रेणी के आधार पर क्रांतिकारी पद्धति से मथुरा के साम्राज्यवाद पर प्रहार कर उसके आतंक को ध्वस्त करते हैं। ___इनकी अलौकिक शक्तियाँ पूतना, तृणावर्त, कालियनाग इत्यादि के दमन के समय दिखाई देती है परन्तु उसमें भी मानवीय पराक्रम सहजता के साथ दिखाई देता है वरना यशोदा, ग्वालबालों तथा गोपियों पर उस अलौकिकता का प्रभाव क्यों नहीं पड़ा? इस प्रकार इन कृतियों के कथानायक कृष्ण की लीलाओं में मानव मन के भावों की सहज आकृतियाँ हैं। श्री कृष्ण द्वारा शिशुपाल तथा जरासंध जैसे राजाओं का वध करना भी उनका अन्याय एवं अत्याचार के विरुद्ध युद्ध है। उनमें सत्तालोलुपता कहीं नहीं है। वे उनके राज्यों को जीतकर उन्हीं के सम्बन्धियों को प्रदान करने में तनिक भी नहीं हिचकिचाते। कथानायक द्वारा जनभावना को ही सर्वोपरि मानना, उनके द्वारा मथुरा से द्वारिका जाने में स्पष्ट दिखाई देता है। जब मथुरा पर जरासंध द्वारा उनके खिलाफ बार-बार आक्रमण होता है, तो मथुरा की जनता क्षुब्ध हो जाती है, तब श्री कृष्ण जन इच्छानुसार मथुरा को त्यागने में तनिक भी विलम्ब नहीं करते। कथानायक द्वारा न्याय का पक्ष लेने में भी उनका कोई सानी नहीं है। अन्याय के विरुद्ध पाण्डवों का पक्ष लेना, इसका उत्कृष्ट उदाहरण है। इतना ही नहीं, कथानायक में आध्यात्मिक बल की भी कमी नहीं, जो उनके जीवन के प्रत्येक प्रसंग में घुला दिखाई देता है। इस प्रकार कृष्ण चरित्र उत्कृष्ट मानवता का चरित्र है जिसे हरिवंशपुराण और सूरसागर में चित्रित कर दोनों कवियों ने अपार कीर्ति को प्राप्त किया है। उसी महान् चरित्र को यहाँ तुलनात्मक दृष्टिकोण से देखने का हमने यथाशक्ति प्रयास किया है। __ . 'शोध-संदर्भ में विभिन्न परम्पराओं के विभिन्न ग्रन्थों में कृष्ण चरित्र के भी विभिन्न रूप स्पष्ट दिखाई देते हैं। इससे पता चलता है कि विभिन्न युगों, कालों में, एक नहीं अनेक कृष्ण हुए हैं जिनके चरित्र और व्यक्तित्व का कालान्तर में एक ही कृष्ण में समन्वयन हुआ दिखाई देता है। ___ साथ ही उनकी लीलाओं और चरित्रों का आख्यान भी आध्यात्मिक रूपक एवं प्रतीकात्मकता को विशेष ध्वनित करते हैं, ऐतिहासिकता को कम। यद्यपि इस पर स्वतंत्र शोध का द्वार अब भी खुला है तथापि ब्रह्म, अवतारी, मानवोपम वा देवोपम श्री कृष्ण का एक में अनेकों की व्यक्तित्व प्रभा से आलोकित प्रभा का रूप ही कवियों का ग्राह्य और मान्य रूप रहा है। अस्तु। = -