Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ 5. श्री कृष्ण वासुदेव बाइसवें तीर्थंकर अहंत अरिष्टनेमि के चचेरे भाई थे। अरिष्टनेमि के प्रति इनकी श्रद्धा स्वाभाविक थी। आगमिक कृतियों में अरिष्टनेमि के द्वारिका आगमन तथा कृष्ण का सदल-बल उनकी धर्म सभा में होने का प्रसंग अनेक रूपों में चित्रित हुआ है। इन वर्णनों में कृष्ण के परिवारजनों का उनसे दीक्षा लेने का वर्णन भी है। 6. यादवों का विनाश मदिरापान से उन्मत्त परस्पर लड़ने से हुआ था। द्वारिका नगरी अग्नि में भस्म हो गई। श्री कृष्ण का प्राणान्त जरत्कुमार के बाण लगने से कौशाम्बी वन-प्रदेश में हुआ। इन सब तथ्यों पर आधारित श्री कृष्ण कथा का संक्षिप्त रूप इस प्रकार से है। श्री कृष्ण वसुदेव-देवकी के पुत्र थे। वसुदेवादि दस भाई थे तथा वे सोरियपुर के राजा थे। श्री कृष्ण अत्यन्त वीर साहसी पुरुष थे तथा बलराम उनके बड़े भाई थे। कृष्ण ने मथुरा नरेश कंस का वध किया एवं तदुपरान्त अपने बल से द्वारिका का राज्य स्थापित कर अपने बल का विस्तार किया। उन्होंने जरासंध का वध करके वासुदेव के रूप में ख्याति अर्जित की। रुक्मिणी उनकी रानी थी। प्रद्युम्न, शाम्ब आदि उनके अनेक पुत्र थे। श्री कृष्ण के चचेरे भाई जैनों के बाइसवें तीर्थंकर के रूप में मान्य हुए। कृष्ण परिवार के अनेक सदस्यों ने उनसे वैराग्य की दीक्षा ली तथा मोक्ष मार्ग ग्रहण किया। यादव लोग मदिरापान कर आपस में लड़ मरे तथा द्वारिका नगरी अग्नि में नष्ट हो गई। जरा नामक व्याध के बाण से श्री कृष्ण का परलोक गमन हुआ। __इतना सब होने के बावजूद भी आगमिक कृतियों में कृष्ण चरित क्रमबद्ध व विस्तार से वर्णित नहीं है। जिनसेन ने इन्हीं आगमिक कृतियों में वर्णित कृष्ण कथा को मूलाधार अथवा बिन्दुस्वरूप में ग्रहण कर इसे क्रमबद्ध एवं विस्तृत रूप प्रदान कर ख्याति प्राप्त की है। जिनसेनाचार्य कृत हरिवंशपुराण में ऊपर उद्धृत तथ्यों के आधार-प्रसंगों का विस्तार मिलता है। साथ ही पूर्वापर सम्बन्ध बनाये रखने के लिए अन्य प्रसंग भी इधरउधर से लेकर कवि ने इसे नवीनता देने का सफल प्रयास किया है। आचार्य जिनसेन द्वारा वर्णित कृष्ण-चरित जैन साहित्य में अपना विशिष्ट महत्त्व रखता है। परवर्ती साहित्य में भी इसी कथा को मूलाधार मानकर जैन कवियों ने कृष्ण चरित का निरूपण किया है। हरिवंशपुराण के. नवीन प्रसंग जो कवि की मौलिकता पर आधारित हैं, द्रष्टव्य हैं श्री कृष्ण की वंश-परम्परा . पुराणकार ने आलोच्य कृति में श्री कृष्ण के वंश परम्परा का विस्तृत विवरण दिया है। यह परम्परा ब्राह्मण परम्परा से कुछ साम्य रखते हुए भी नवीनता के आधार पर निरूपित हुई है। __जिनसेनाचार्य के अनुसार भरत-खण्ड में विद्यमान चम्पापुरी में "आर्य" नाम का राजा हुआ। उसके हरि नाम का पुत्र था, जो इन्द्र के समान प्रसिद्ध हुआ। यही परम यशस्वी सम्राट् हरि, हरिवंश की उत्पत्ति का कारण बना। हरि से महागिरि, महागिरि से हिमगिरि, - -