Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ भारतेन्दु - छोटे-छोटे भँवरा चकई छोटी-छोटी लिए। छोटे-छोटे हाथन सौ खैले मन मौहे। छोटे-छोटे चरन सौ चलत घुटुरुवन, यही ब्रजलाल छोटी छोटी नवि जौहे। हरीचन्द छोटे-छोटे कर पै माखन लिए, उपमा वरनि सके ऐसो कवि को है।६६ आधुनिक काल के कवियों में सूरसागर का सर्वाधिक प्रभाव जगन्नाथदास रत्नाकर कृत "उद्धव शतक" पर दिखाई देता है। रत्नाकर के अनेक छन्दों में भाव-साम्य सूर की पदावली से पाया जाता है। कतिपय उदाहरण प्रस्तुत हैं(क) सूर - निरखति अंक स्याम सुन्दर कै, बार बार लावति लै छाती।६७ रत्नाकर - उझकि-उझकि पद कंजनि के पंजनि पै, . पेखि-पेखि पाती छाती छोहनि छबै लगी।६८ (ख) सूर - कागद गरे मेघ मसि खटी. सर दव लागि जरे॥६९ रत्नाकर - सूखि जात स्हायी लेखनी को नैंकु डंक लागे। अंक लागे कागद बररि बरि जात है। "छायावाद" के प्रसिद्ध कवि जयशंकर प्रसाद की प्रसिद्ध कृति कामायनी (जो आधुनिक युग की सर्वोत्कृष्ट काव्यकृति है) पर भी कहीं-कहीं सूरसागर की छाया दिखाई देती है। वात्सल्य रस का एक प्रसंग देखिये जिसमें सूरसागर के पद की झलक दिखाई देती हैसूरसागर - हरि किलकत जसुदा की कनिया निरखि निरखि मुख हंसति स्याम कौ सो निधन की धनियाँ। कामायनी- माँ फिर एक किलक दूरागत गूंज उठी कुटिया सूनी। माँ उठ दौड़ अरे हृदय में लेकर उत्कर्ष दूनी। लूटरी खुली अलक रज घूसर बाहे आकर लिपट गयी। निशा तापसी की जलने की धधक उठी बुझती धूनी।७२ "छायावाद" के बाद भी सूरसागर के प्रभाव का सिलसिला समान गति से नयी प्रयोगशील काव्य-धारा तक चला आ रहा है। इस धारा के शीर्षस्थ कवियों ने भी सूरसागर के प्रभाव को अपनी रचनाओं में ग्रहण किया है। निष्कर्ष : उपर्युक्त विवेचन के बाद हम कह सकते हैं कि सूरदास हिन्दी साहित्य के वह