Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ रसखान :-अष्टछाप कवियों के उपरान्त रसखान का कवित्व भी सूरसागर की प्रेरणा का परिणाम प्रतीत होता है। ब्रज भाषा का माधुर्य जो सूर ने अपने काव्य में बिखेरा था, रसखान का काव्य उससे ओत-प्रोत है। दोनों की साम्यता पर आधारित एक पद द्रष्टव्य हैसूर - चले अकुलाई बनधाम, धाई व्हाई गाय, देखिही जाइ मन हरष कीन्हौं।५३ / रसखान - अधर लगाई रस प्याय बाँसुरी बजाय, मेरौ नाम गाय हाय, जादू कियो मन में।१४ रीतिकालीन काव्य :-रीतिकाल के कवियों की रचनाएँ भाषा व भाव को दृष्टि से सूरसागर की ऋणी हैं। सूरसागर की कवित्त शैली का ही व्यापक रूप रीतिकाल में दिखाई देता है। क्या भाषा, क्या हाव-भाव का संयोग-वियोग, सर्वत्र सूरसागर का प्रभाव अवलोकनीय है। यहाँ हम कतिपय कवियों पर सूरसागर के प्रभाव का वर्णन करेंगे। बिहारीलाल :-इन्होंने सूरसागर की कलात्मक वर्ण योजना, शाब्दिक ध्वनि चमत्कार, अलंकार-योजना तथा भावानुरूप शब्द-सौन्दर्य का स्पष्ट अनुसरण किया है। इनकी रचनाओं में सूरसागर का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है। कतिपय उदाहरण देखिये-- सूर - ललित आँगन लै ठुमुकि डोले झुनुकि झुनुकि बौले पेंजनी मृदु मुखर।१५ बिहारी रनित भंग घंटावली, झरित दान मधुनीर। मंद मंद आवत चल्यो, कुंजर कुंज समीर॥५६ सूर - बेसरि की मुक्ता की झांई वरन विराजति चारि। मानौ सुरगुरु सुक्र भौम, सनि चमकत चंद मंझारि॥५७ बिहारी - मंगल बिद् सुरंग, मुख, ससि केसर आड गुरु। इक नारी लाहे संग, रसमय किय लोचन जगत // 18 मतिराम :-इनकी रचनाओं पर भी सूरसागर का प्रभाव परिलक्षित होता है। सूरसागर की भाव भूमि, काव्य सौन्दर्य तथा पदावली के आधार पर इन्होंने अपनी रचनाओं का निरूपण किया है। साम्यता पर आधारित एक पद देखिये हमारे हरि हारिल की लकरी। मन वच क्रम नंदन उरु यह दृढ़ करि पकरी॥ जागत सोवत स्वप्न दिवस निसि कान्ह-कान्ह जकरी।५९ सूर - min D