Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy

View full book text
Previous | Next

Page 388
________________ सूरसागर - जसुमति मन अभिलाष करे। गीतावली - हे ही लाल कबहि बड़े बलि मैया। सूरसागर - प्रातः भयौ जागो गोपाल। गीतावली - भोर भयो जागहु रघुनन्दन। विषय साम्य के अलावा अभिव्यंजना कौशल में भी गीतावली तथा कृष्ण गीतावली में सूर का साहाय्य तुलसी ने लिया है। अष्टछाप के कवियों पर सर का प्रभाव :-अष्टछाप के कवियों पर सूर का प्रभाव निश्चित है। सूर अष्टछाप कवियों में सर्वश्रेष्ठ तथ सर्वप्रिय थे। मात्र कुंभनदास को छोड़कर सभी उनसे छोटे थे। कीर्तनकारों में सभी कवि उनका अनुसरण करते थे। अतः सूर काव्य का प्रभाव उन पर स्वाभाविक हैकुंभनदास :-ये भक्तहृदय के कवि तथा संगीतज्ञ थे। इनके अनेक पदों में सूरसागर का प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है। उपमा-विधान पर साम्य रखने वाला एक पद द्रष्टव्य है। सूरदास - मनौ गिरिवर तै आवति गंगा। राजति अति रमनीय राधिका, इति विधि अधिक अनूपम अंगा।" कुंभनदास - यह अद्भुत सरि रच्यो विधाता, सरस रूप अवगाहिं। कुंभनदास प्रभु गिरिधर-नागर, देखत उमगत ताहिं॥ परमानंददास :-इनके पदों की भाषा में प्रात:कालीन वर्णनों में तथा रागों के विधान में सूरसागर का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है। अनुकरण पर आधारित कुछ पद द्रष्टव्य हैंसूरसागर - मानो घन घन अबतर दामिनि। 1 परमानन्द - घन में छिपि ज्यों दामिनि।२ सूर- बुहरि पपीहा बोल्यो की माई।०३ परमानन्द - रैनि पपीहा बौलयो की माई।४४ सूर - माई मोरो चन्द लग्यौ दुःख देन। 5 परमानन्द - माई री चन्द लग्यौ दुःख देन। इन पदों में सूर की शब्दावली को ज्यौँ का त्यौं पकड़ लिया है। इन्होंने विषय, पदरचना, भाषा, आलंकारिकता इत्यादि सभी में सूरसागर को अपना आदर्श बनाया। कृष्णदास :-ये अष्टछाप के चौथे कवि थे। इनका स्वभाव हठी था। इन्होंने सूरसागर की प्रतियोगिता में पद रचना की थी अतः इनके पदों में सूर की छाया तो है परन्तु अनुकरण में सुप्रभाव का अभाव है। सूर ने जहाँ सौन्दर्य वृद्धि की है, वहाँ कृष्णदास ने विकृति उत्पन्न की है। इनकी विकृति का एक पद देखिये

Loading...

Page Navigation
1 ... 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412