Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ लिए यह. पुराण विपुल सांस्कृतिक अध्ययन की सामग्री प्रदान करता है, यही इसकी सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण देन है। इस सामग्री के उपयोग की आज आवश्यकता है। जिस प्रकार बाण की कादम्बरी व हर्षचरित का सांस्कृतिक अध्ययन की दृष्टि से महत्त्व है; इसी प्रकार हरिवंशपुराण का भी पर्याप्त महत्त्व है। डॉ. प्रकाशचन्द जैन ने हरिवंशपुराण के सांस्कृतिक अध्ययन पर शोध कार्य कर इसके सांस्कृतिक महत्त्व की दृष्टि से नवीन गति प्रदान की है। हरिवंशपुराण के दोष को भी उजागर करना अनुचित न होगा। जहाँ धार्मिक उपदेशों तथा साम्प्रदायिक प्रचार की अति हो गई, वहाँ सहृदय पाठक उबने लगता है। कहींकहीं भाषा में भी दुरूहता आ गई है। ऐसे स्थलों को साहित्यिक दृष्टि से अच्छा नहीं कहा जा सकता। .... संक्षेप में हरिवंशपुराण का जैन कृष्ण काव्य में वह स्थान प्राप्त है, जो ब्राह्मण परम्परा के संस्कृत साहित्य में महाभारत एवं श्रीमद्भागवत का। भारतीय संस्कृति को हरिवंशपुराण का योगदान : आचार्य जिनसेनकृत हरिवंशपुराण भारतीय सांस्कृतिक इतिहास के लिए एक महत्त्वपूर्ण कृति है। इसमें इतिहास, भूगोल, दर्शन और संस्कृति साहित्य की सामग्री भरी पड़ी है। भारत के कुछ महापुरुषों के चरित्र क्षेत्र-काल की सीमा का उल्लंघन कर व्यापक रूप से लोक रुचि के कारण बन गये हैं। राम तथा कृष्ण चरित्र भी इसी प्रकार के हैं। हिन्दू एवं जैन परम्परा में इनको पर्याप्त महत्त्व प्राप्त है। गत दो ढाई हजार वर्षों से अगणित पुराण काव्य नाटक कथानक इन महापुरुषों के जीवन के आधार पर लिखे गये हैं। जिस प्रकार ब्राह्मण परम्परा में रामायण एवं महाभारत का. इन चरित्रों के वर्णन में महत्त्व है, उसी तरह जैन परम्परा में पद्म चरित्र तथा हरिवंशपुराण था। जैन परम्परा में उपर्युक्त हरिवंशपुराण में पूर्ण कृष्ण चरित्र व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध रूप से नहीं मिलता है। पूर्व के साहित्य में कृष्ण चरित्र का जो वर्णन मिलता है, वह बहुत ही या महाभारत के अनुसार तथा कुछ भिन्न रूप से पाया जाता है। विशेष बात यह है कि चरित्र के विभिन्न प्रसंगों के कथासूत्रों को भिन्न सम्प्रदायों में अपनी-अपनी सैद्धान्तिक एवं नैतिक परम्परा के अनुरूप ढालकर अपनाया है। जैन धर्म विश्व को जड़ चेतन रूप से अनादि एवं अनन्त मानता है। उसका विकास काल-क्रम के आरोह-अवरोह-क्रम से ऊपर-नीचे की ओर परिवर्तनशीलता के आधार पर बदलता रहता है। अतः हरिवंशपुराण में भी यही लोकव्यवहार निरूपित है। जिनसेनाचार्य ने महाभारत की कथावस्तु को जन-ढाँचे में ढालकर लिखा है, इसलिए महाभारत से इसका कई स्थलों पर मेल है तो कई स्थानों पर मेल नहीं है। - -