Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 353
________________ वध करते हैं। अहो! मनुष्यों की निर्दयता तो देखो। रण में विजय कीर्ति प्राप्त करने वाले योद्धा सामने योद्धाओं पर ही प्रहार करते हैं, निर्बलों पर नहीं। हाथी, घोड़े और रथ का सवार अपने से लड़ने को तत्पर आदमी से लड़ने को तैयार होता है, दूसरे पर वार नहीं करता। सामन्तों की यही नीति है कि वन के सिंह से भागे तथा मृग व बकरों को मारे, उन्हें शर्म क्यों नहीं आती? अहा! जो शूरवीर पैर में काँटा चुभ जाये इस भय से स्वयं तो जूता पहनते हैं और शिकार के समय कोमल मृगों को सैकड़ों तीक्ष्ण बाणों से मारते हैं। यह बड़े आश्चर्य की बात है। आज मनुष्य भय में भी इतना मोहित हो गया है कि सांसारिक दुःख को दूर करने का यत्न नहीं करता। यह कह कर नेमिकुमार विरक्त मन से द्वारिका लौट गये। वहाँ स्नानकर सिंहासन बैठे जहाँ राजा कृष्ण एवं बलभद्र बैठे थे। तदनन्तर वे तप करने उठने लगे तब कृष्ण, बलभद्र व भोजवंशियों ने नाना प्रकार से उनका अनुनय-विनय कर, आगा-पीछा समझाकर उन्हें रोकने का प्रयास किया परन्तु सब व्यर्थ। जिस प्रकार पिंजरा तोड़कर निकलने में उद्यत प्रबल सिंह को कोई नहीं रोक सकता, ठीक उसी प्रकार तप के लिए जाने वाले दृढ़ संकल्पी नेमिकुमार को रोकने में कोई समर्थ न हो सका। फिर नेमिकुमार ने अपने माता-पिता आदि परिवार के लोगों को अपना निर्णय एवं संसार की स्थिति समझाकर गिरनार पर्वत की तरफ निकल गये।९ सुमेरु के समान कांतिवाले गिरनार पर्वत पर पहुँच कर नेमिकुमार ने अपने हाथों से सिर के कुटिल केशों को उखाड़ दिया तथा अनेक राजाओं के साथ उन्होंने दीक्षा ली। इसी पर्वत पर सहस्राम्रवन उद्यान में उन्होंने कठोर तप कर सिद्धि प्राप्त की। ___ तदुपरान्त एक बार बलदेव, श्री कृष्ण व अनेक यादव लोग गिरनार पर्वत पर गये। वहाँ भगवान् नेमिनाथ ने सबको धर्मोपदेश दिया। उनके द्वारा बताये गये निर्मल मोक्षमार्ग को सुनकर उन सभी लोगों ने उन्हें नमस्कार किया एवं अपने आप को धन्य-धन्य समझने लगे। - व्यापक धर्म लाभ के लिए जिनेन्द्र नेमिनाथ विहार कर लोगों को उपदेश देने लगे। नाना देशों में यथाक्रम विहार कर उन्होंने क्षत्रिय आदि वर्गों को जैन धर्म में स्थिर किया। भद्रिलपुर आने पर वहाँ श्री कृष्ण के छहों भाइयों ने उनसे दीक्षा ली। तदुपरान्त वे गिरनार पर्वत पर रहने लगे। एक बार पुनः श्री कृष्ण-बलदेव व यादवों सहित गिरनार पर भगवान् से धर्म-श्रवण करने आये। वहाँ बलदेव के पूछने पर नेमिनाथ ने द्वारिका के विनाश एवं श्री कृष्ण व सभी यादवों का अन्तकाल कैसा होगा, इसका सम्पूर्ण वृत्तान्त सुनाया। द्वारिका का दाह, श्री कृष्ण का परमधामगमन व यादवों का विनाश निकट जान कृष्ण के अनेक परिवारजनों ने उनसे दीक्षा ग्रहण कर मोक्षमार्ग को अपनाया। - - -

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