Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ विभूत्या परमागत्य शैवेयमभिवन्द्यते। आसीना समवस्थाने धर्म शुश्रुवुरीश्वरात्॥२२ इसी धर्मसभा में बलदेव के पूछने पर भगवान् अर्हत नेमि ने उनसे यादवों तथा द्वारिका के विनाश के बारे में भविष्य कथन कहा। इतना ही नहीं, इस वर्णन में उन्होंने श्री कृष्ण वासुदेव के देहत्याग एवं भावी जन्म का भी भविष्य कहा। श्री कृष्ण ने नेमिनाथ के वचनानुसार द्वारिका में मद्य-निषेध करवाया तथा लोगों से नेमिनाथ से दीक्षित होकर तप करने की सलाह दी। इसी घोषणा के आधार पर प्रद्युम्नकुमार, भानुकुमार तथा रुक्मिणी, सत्यभामा आदि आठ पट्टरानियों ने अनेक पुत्रवधूओं के साथ उनसे दीक्षा धारण की। संक्षेप में इन प्रसंगों से एक ही बात ध्वनित होती है कि श्री कृष्ण को अरिष्टनेमि के धर्मोपदेशों में विशेष रुचि थी। वे उनसे उपदेश सुनते थे तथा यदाकदा धर्म सम्बन्धी प्रश्न भी पूछा करते थे। कृष्ण का अरिष्टनेमि की धर्मसभाओं में उपस्थित होने तथा धर्मोपदेश सुनने के अनेक प्रसंग आलोच्य कृति में निरूपित हुए हैं, जो उनके आध्यात्मिक राजपुरुष स्वरूप को प्रकट करते हैं। श्री कृष्ण का ऊर्ध्वलिखित आध्यात्मिक राजपुरुष स्वरूप जैन-परम्परा की देन है। ऐसा वर्णन ब्राह्मण परम्परा में तनिक मात्र भी नहीं है, यह जैन कवियों की नवीन उद्भावना है जिससे जनसाधारण प्रायः आज दिन तक अपरिचित रहा है। शलाकापुरुष श्री कृष्ण :: जैन परम्परा के श्री कृष्ण चरित्र में श्री कृष्ण के गोपीजनप्रिय एवं राधाप्रिय स्वरूप का सर्वथा अभाव रहा है। राधा का नाम जैन परम्परागत कृष्ण चरित वर्णन में कहीं देखने को नहीं मिलता। जैन कथानायक श्री कृष्ण में श्रृंगारी नायक के स्वरूप का अभाव है। अपेक्षाकृत उनके वीर, श्रेष्ठ शलाकापुरुष के स्वरूप का ही सर्वत्र वर्णन हुआ है। कारण स्पष्ट है कि उनके अनुसार श्री कृष्ण अपने समय के वासुदेव शलाकापुरुष थे। इस रूप में वे महान् शक्तिशाली, अर्धचक्रवर्ती राजा थे। उनके द्वारिका सहित सम्पूर्ण दक्षिण क्षेत्र पर प्रभाव व प्रभुत्व था। __हरिवंशपुराण इसी मान्यता पर आधारित काव्यग्रन्थ होने के कारण श्री कृष्ण के बाल्यावस्था से उनकी अद्भुत वीरता का वर्णन करता है। जिनसेनाचार्य ने श्री कृष्ण के बाल्यकाल की पराक्रम युक्त क्रीड़ाओं का वर्णन करते हुए लिखा है कि उन्होंने चाणूरमल्ल एवं कंस-वध के समय अद्वितीय वीरता एवं पराक्रम दिखाया। ... हरिरपि हरिशक्तिः शक्तचाणूरकं तं द्विगुणितमुरसी स्वे हारिहुंकारगर्भः। व्यतनुत भुजयन्त्राक्रान्तनीरन्ध्रनिर्यद्वहलरुधिरधारोद्गारमुद्गीर्णजीवम्। दशशतहरिहस्तिप्रोबलौ साधिषूभावितिहठहतमल्ली वीक्ष्य तौ शीरिकृणौ।