Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 379
________________ लिखा है कि "इति श्री हरिवंशपुराणसंग्रहे भव्यसमंगलकणे आचार्य श्रीजिनसेन-विरचिते तस्योपदेश श्री शालिवाहन विरचिते।" इससे स्पष्ट हो जाता है कि इसका नाम ही नहीं वरन् कथानक भी हरिवंशपुराण के अनुसरण पर लिखा गया है। कृति के कुछ प्रसंग द्रष्टव्य हैं जिसमें आलोच्य कृति का साम्य है। सर्वप्रथम कंस की मल्लशाखा में श्री कृष्ण के पराक्रम का प्रसंगहरिवंशपुराण - खरनरखरकठोरौ मुष्टिबन्धौ विधाय, (संस्कृत) प्रकटितपटुसिंहाकारसंस्थानभेदी। स्थिरचरणनिवेशो शौरिचाणूरमल्ला:वनिभृतमभिलग्नौ मुष्टिसंघट्टयुद्धे // 10 हरिवंशपुराण - चंडूर मल्ल उठ्यो काल समान। (शालवाहन) ब्रज मुष्टि देयत समान॥ जानि कृष्ण. दोनो कर गहै। फेर पाई धरती पर वहै॥११ रुक्मिणीहरण का प्रसंग देखियेहरिवंशपुराण - पांचजन्यमतो दध्मौ मुखरीकृतदिग्मुखम्। (शालिवाहन) सुघोषं तु बलः शंखं चुक्षोभारिबलं ततः॥१२ हरिवंशपुराण - लई रूक्मिणी रथ चढ़ाई पंचाइण तव पूरियो। (शालिवाहन) णि सुनि वपणु सब सैन, कप्यौ महि मण्डल॥१३ जरासंध वध का प्रसंगहरिवंशपुराण - इत्युक्ते कुपितश्चक्री चक्रं प्रभ्राम्य सोऽमुचत्। (संस्कृत) प्रयुक्तस्य कृतार्थस्य कालक्षेपो हि निष्फलः॥१४ . हरिवंशपुराण - तब मागध ता सन्मुखगयौ, चक फिराहे हाथि कर लयौ। (शालिवाहन) तापर चक्र डारियो जामा, तीनों लोक कंपीयो तामा॥ हरि को नमस्कार करि जाति दाहिने हाथ चढ़यौ सौ आनि। तब णारायण छोड़यो सोइ, मागध ढूंक रक्त सिर होई॥१५ यह ग्रन्थ अप्रकाशित है परन्तु इसकी अनेक हस्तलिखित प्रतियाँ विभिन्न जैन ग्रन्थागारों में उपलब्ध है। =377=

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