Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ मुनिराज के शिर पर तीव्र अग्नि प्रज्ज्वलित करने लगा। उस अग्नि से उनका शरीर जलने लगा। उसी समय उसी अवस्था में शुक्ल ध्यान के द्वारा कृतकेवली हो मोक्ष चले गये। उधर समयानुसार नेमिनाथ श्री कृष्ण के छः भाईयों व अन्य मुनियों के साथ निर्वाण धाम को प्राप्त हुए। उपर्युक्त विवरणानुसार देवकी की गोद से जन्मे श्री कृष्ण इत्यादि आठ भाई थे। छः भाई क्रमशः नृपदत्त, देवपाल, अनीकदत्त, अनीकपाल, शत्रुघ्न तथा जितशत्रु, श्री कृष्ण से बड़े एवं गजकुमार उनसे छोटे थे। श्री कृष्ण के सिवाय सातों भाईयों ने जिनेन्द्र अरिष्टनेमि से दीक्षा ग्रहण कर मो: नार्ग को अपनाया। जिनसेनाचार्य की यह नवीन उद्भावना कृष्ण चरित्र को जैन-परम्परा के अनुरूप निरूपित करने की प्रतीत हो रही है। श्री कृष्ण के पुत्र : जब श्री कृष्ण रुक्मिणी एवं सत्यभामा जैसी रानियों के साथ सुखपूर्वक दिन व्यतीत कर रहे थे, तब हस्तिनापुर के राजा दुर्योधन ने दूत भेजकर श्री कृष्ण के पास यह समाचार भेजा कि, आपकी सत्यभामा तथा रुक्मिणी रानियों में से जिसके पहले पुत्र होगा वह यदि मेरी पुत्री उत्पन्न हुई तो उसका पति होगा। यह समाचार उन दोनों पटरानियों ने भी जाना। समयानुसार एक ही रात्रि को दोनों रानियों ने एक-एक उत्तम पुत्र को जन्म दिया। दोनों रानियों ने श्री कृष्ण के पास रात्रि में ही यह शुभ समाचार भेजने के लिए दूत भेजे। सत्यभामा द्वारा भेजा गया सेवक श्री कृष्ण के सिर के पास एवं रुक्मिणी द्वारा भेजा गया सेवक उनके चरणों की तरफ खड़ा रहा। श्री कृष्ण के जगने पर उनकी दृष्टि चरणों की तरफ पड़ी। उधर खड़े सेवक ने रुक्मिणी के पुत्र जन्म का शुभ समाचार सुनाया। इस पर प्रसन्न हो श्री कृष्ण ने आभूषण पुरस्कार में दिये। तदुपरान्त सत्यभामा के सेवक ने भी पुत्रोत्पत्ति का समाचार सुनाया। सन्तुष्ट हो उसे भी श्री कृष्ण ने पुरस्कार में धन दिया। पुत्र जन्म की छठी रात्रि को आकाशमार्गी धूमकेतु नाम के एक असुर ने पूर्वभव के वैर के कारण रात्रि के समय सभी को महानिद्रा में मग्न कर पुत्र का अपहरण कर लिया एवं आगे जाकर एक शिला के नीचे उस बालक को रख वह अदृश्य हो गया। तदनन्तर विहार को निकले हुए मेघकूट का राजा कालसंवर अपनी पत्नी कनकमाला के साथ उसी स्थान पर आया। उन्होंने उस बालक को अपने साथ ले लिया तथा उसका राजकुमार की भाँति लालन-पालन किया। स्वर्ण के समान कान्ति का धारण होने से उस बालक का नाम प्रद्युम्न रखा। उधर रुक्मिणी जागृत होकर पुत्र को अपने पास न देखकर अत्यन्त विकल हो गई। श्री कृष्ण ने सांत्वना दी एवं अपने पुत्र को खोजने का वे प्रयास करने लगे। इतने में महामुनि नारद वहाँ आये, उन्होंने कहा कि, मैं शीघ्र ही तुम्हारे पुत्र का समाचार लाता हूँ। तुम शोक न करो। नारद मुनि सीमन्धर भगवान् के पास गये, वहाँ से -