Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ उन्होंने सन्तुष्टि के साथ सेमा सहित नगर में प्रवेश किया। तदनन्तर प्रद्युम्न के उत्तमोत्तम कन्याओं के साथ विवाह हुए। श्री कृष्ण की पटरानी जाम्बवती से शम्ब नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। शम्ब भी प्रद्युम्न के समान अत्यन्त पराक्रमी व वीर था। उसने रुक्मिणी के भाई रुक्मी की "वैदर्भी" नामक कन्या का हरण किया। एक बार शम्ब की वीरता पर प्रसन्न हो श्री कृष्ण ने उसे वर माँगने का कहा। इस पर उसने एक मास का राज्य माँग अपने विपरीत क्रियायें की। इससे श्री कृष्ण ने उस पर कोप किया एवं दुराचारी शम्ब को ताड़ना दी।५१ हरिवंशपुराण के अनुसार प्रछु, भानु .. मा शम्ब के अलावा श्री कृष्ण के सुभानु, महाभानु, सुभानुक, वृहद्रथ, अग्निशिख, विष्णुजय, अकम्पन, महासेन, धीर, गम्भीर, उदधि, गोतम, वसुधर्मा, प्रसेनजित, सूर्य, चन्द्रवर्मा, चारुकृष्ण, सुचारु, देवदत्त, भरत एवं शंख इत्यादि पुत्र थे। ये सभी पुत्र अस्त्र-शस्त्र एवं शास्त्र में निपुण तथा युद्ध में कुशल थे।५२ द्रौपदी-हरण एवं श्री कृष्ण द्वारा उसे वापिस लाना : हरिवंशपुराण के अनुसार द्रौपदी माकन्दी नगरी के राजा द्रुपद की पुत्री थी, जिसका शरीर रूप-लावण्य तथा अनेक कलाओं से अलंकृत था। वह अपने सौन्दर्य के विषय में सानी नहीं रखती थी।५३ राजा द्रुपद ने गाण्डीव नामक धनुष को गोल करने एवं चन्द्रक-वध को उसके वर की परीक्षा का साधन निश्चित किया। . इस घोषणा को सुन अनेक राजा वहाँ आये, पर वे अपने लक्ष्य में सफल न हो सके। उसी समय पाण्डव बारह वर्ष का अज्ञातवास पूर्ण कर स्वयंवर सभा में उपस्थित हुए। अर्जुन ने अपने लक्ष्य को बेध दिया। उसी समय द्रौपदी ने आकर वर की इच्छा से अर्जुन की ग्रीवा में वरमाला डाल दी। परन्तु मौके की बात, वह माला टूट गई और हवा के झोंके से पास में खड़े हुए पाँचों पाण्डवों के शरीर पर जा पड़ी। किसी विवेकहीन चपल मनुष्य ने यह जोर-जोर से कहना शुरू किया कि, इस राजकुमारी ने पाँचों राजकुमारों को वरा है।५४ . इस कथन की पुष्टि जिनसेनाचार्य ने आगे भी की है कि युधिष्ठिर व भीम द्रौपदी को बहू जैसा मानते थे तथा नकुल व सहदेव माता के समान। द्रौपदी भी युधिष्ठिर व भीम को अपने श्वसुर के समान सम्मान देती थी तथा नकुल व सहदेव को देवरों के अनुरूप मानती थी।५ . जब पाण्डव हस्तिनापुर में यथायोग्य रीति से राज्य कर रहे थे, उस समय क्रुद्ध हृदय तथा स्वभाव से कलह प्रेमी नारद पाण्डवों के पास आये। पाण्डवों ने नारद मुनि का आदर-सत्कार किया। परन्तु जब वे द्रौपदी के महल में गये। उस समय वह आभूषण