Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ प्रचलितवति कंसे शातनिस्त्रिंशहस्ते व्यचलदखिलरंगाम्भोधिरुत्तुंगनादः॥ अभिपतदरिहस्तात्खङ्गमाक्षिप्य केशेष्वतिदृढमतिगृह्याहत्य भूमौ सरोषम्। विहितपरुषपादाकर्षणस्तं शिलायां तदुचितमिति मत्वास्फाल्य हत्वा जहास॥२२ . 36/43-45 अर्थात् इधर सिंह के समान शक्ति के धारक एवं मनोहर हुंकार से युक्त श्री कृष्ण ने चाणूर मल्ल को, जो उनसे शरीर में दूना था, अपने वक्षःस्थल से लगाकर भुजयन्त्र के द्वारा इतना जोर से दबाया कि उससे अत्यधिक रुधिर की धारा बहने लगी और वह निष्प्राण हो गया। कृष्ण और बलराम में एक हजार सिंह तथा हाथियों का बल था। इस प्रकार अखाड़े में जब उन्होंने हठपूर्वक कंस के प्रधान मल्लों को मार डाला तो उन्हें देख . कंस हाथ में पैनी तलवार लेकर उनकी ओर चला। उसके चलते ही समस्त अखाड़े का जनसमूह समुद्र की भाँति जोरदार शब्द करता उठ खड़ा हुआ। श्री कृष्ण ने अपने सामने आते हुए शत्रु के हाथ से तलवार छीन ली तथा मजबूती से उसके बाल पकड़कर उसे क्रोध वश पृथ्वी पर पटक दिया। तदनन्तर उसके कठोर पैरों को खींचकर, उसके योग्य 'यही दण्ड है', यह विचार कर उसे पत्थर पर पछाड़ कर मार डाला। कंस को मारकर श्री कृष्ण हँसने लगे। कंस वध के समय उनकी ऐसी वीरता का वर्णन सूरसागर इत्यादि में नहीं मिलता है। रुक्मिणी-हरण प्रसंग में आचार्य जिनसेन ने लिखा है कि जब श्री कृष्ण रुक्मिणी के हरण के पश्चात् वापस लौट रहे थे, उस समय रुक्मिणी के भाई रुक्मी तथा चेदि नरेश शिशुपाल ने एक विशाल सेना लेकर श्री कृष्ण का पीछा किया। रुक्मिणी अनिष्ट की आशा से घबरा गई परन्तु श्री कृष्ण ने उसे सान्त्वना देते हुए कहा कि इत्युक्त्वाऽसौ क्षुरप्रेण क्षिप्रमप्राकृतास्त्रवित्। ' अयत्नेनैव चिच्छेद तालवृक्षं पुरः स्थितम्॥ अंगुलीयकनद्धं च वजं संचूर्ण्य प्राणिना। तस्याः संदेहमामूलं चिच्छेद यदुनन्दनः॥२४ अर्थात् श्री कृष्ण ने रुक्मिणी से कहा कि, हे कोमलहृदये! भयभीत न हो। मुझ पराक्रमी के रहते हुए दूसरों की संख्या बहुत होने पर भी क्या हो सकता है? इस प्रकार असाधारण अस्त्र को जानने वाले श्री कृष्ण ने अपने बाण से सामने खड़े ताल के वृक्ष को अनायास ही काट डाला तथा अंगूठी में जड़े हुए हीरा को हाथ से चूर्ण कर उसके सन्देह को जड़ मूल से नष्ट कर दिया। तदनन्तर शत्रु सेना के साथ उनका भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध में सिंह के समान शूरवीर श्री कृष्ण ने शिशुपाल का सामना किया तथा द्वन्द्व-युद्ध में उन्होंने अपने तीक्ष्ण बाण से शिशुपाल का मस्तक गिरा दिया।२५