Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ गये। गिरनार पर्वत की शोभा अनुपम थी। वासन्ती फूलों के परांगों से सुगन्धी हवा, आम्रलताओं के रस का आनन्द लेने वाली कोकिलाओं की कुहू कुहू, मधुपान में लीन भ्रमरों के गुंजन से वन प्रदेश अत्यन्त मनोहर हो रहा था। ऐसे मनमोहक वातावरण में सभी लोग आनन्द के साथ क्रीड़ा करने लगे। उस गिरनार पर्वत पर श्री कृष्ण ने अपनी रानियों के साथ वसन्त ऋतु का चैत्रमास व्यतीत किया। कृष्ण की रानियाँ बड़ी वाचाल थी। उन्होंने अपने पति से आज्ञा लेकर देव नेमिनाथ के साथ वृक्षों व लताओं से रमणीय वनों में क्रीड़ा करने लगी। कोई भाभी नेमिनाथ का हाथ पकड़कर विहार कराने लगी तो कोई उनको वन की शोभा दिखाने लगी और कोई उन्हें साल-तमाल वृक्षों की टहनियों के पंखों से हवा करने लगी। कई भाभियाँ अशोक वृक्ष के नये-नये पल्लवों से कर्णाभरण या सेहरा बनाकर उन्हें पहनाने लगी। कोई उन्हें पुष्पमालाएँ पहनाने लगी, कोई सिर पर मालाएँ बाँधने लगी और कोई उनके सिर को लक्ष्य बनाकर उस पर पुष्प फैंकने लगी। इस प्रकार युवा नेमिकुमार भाभियों के साथ वसन्त का आनन्द ले रहे थे। वे भाभियाँ बड़ी भक्तिभाव से उनकी सेवा में तल्लीन थी।३ . वसन्त ऋतु के बाद. ग्रीष्म ऋतु आई। तब श्री कृष्ण की प्रियाएँ नेमिकुमार से जलक्रीड़ा का आग्रह करने लगी। गिरनार पर्वत शीतल जल के झरनों से मनमोहक लग रहा था। इन झरनों के जल से नेमिकुमार भौजाइयों के आग्रह से जलक्रीड़ा करने लगे। यद्यपि नेमिकुमार स्वतः राग से पराङ्मुख थे तथापि उस समय जल में तैरना, डुबकी लगाना, दूर निकलना उनके लिए साधारण बात थी। उन्होंने अपनी भाभियों के साथ विविध जल क्रीड़ाएँ की। उस जलक्रीड़ा से उन तरुणियों का ग्रीष्म दाह मिट गया। वे तृप्त हो गई उनके कर्णाभरण गिर गये, तिलक मिट गये, आकुलता बढ़ गई, मेखला ढीली हो गई। अब उन सबने स्नान करके अपने-अपने वस्त्र बदले।४ तदुपरान्त नेमिनाथ ने जो स्नान करके गीला वस्त्र छोड़ा था, उसे कृष्ण की अतिप्रिया पत्नी एवं अपनी भाभी जाम्बवती से आँख के इशारे द्वारा निचोड़ने का कहा। इस पर जाम्बवती बुरा मान गई तथा अपनी भौंहे टेढ़ी करके उनसे कहने लगी कि-ऐसी आज्ञा तो उसके महाबलवान् नाग शय्या पर सोने वाले और शारंग धनुष को चढ़ाने वाले श्री कृष्ण भी कभी नहीं करते, फिर आप कोई विचित्र पुरुष जान पड़ते हो। जो मुझे इस पकार से गीला वस्त्र निचोड़ने का आदेश दिया है। ___ जाम्बवती के उक्त वचन सुनकर नेमिनाथ ने कहा कि तूने राजा कृष्ण के पौरुष का वर्णन किया है, संसार में वह कितना कठिन है। इतना कहकर वे अविलम्ब नगर में गये और वे लहलहाते सर्यों की मालाओं से सुशोभित श्री कृष्ण की नागशय्या पर चढ़ गये। उन्होंने शारंग धनुष को चढ़ा कर प्रत्यंचा से मुक्त कर दिया। शंख की ध्वनि से