Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
View full book text
________________ सानुरक्तां त्रपायुक्तां श्रीमत्यास्तनयां ततः। रथमारोपयद्दोामुत्क्षिप्यामीलितेक्षणः॥ निर्वाहकस्तयोरासीत्तदान्योन्यसुखावहः। सर्वांगीणस्तनुस्पर्शः प्रथमो मन्मथार्त्तयोः॥१३ सुगन्धिमुखनिश्वासस्तयोरन्योन्ययोगतः। वास्यवासकभावस्थो वशीकरणतामगात्॥१४ रुक्मिणी के साथ श्री कृष्ण - रम : या प्रसंग देखिये कवि के शब्दों में मुरारिरपि रुक्मिणीतनुलताद्विरेफस्तदा, चिरं रमितया तयारमत रम्यमूर्तिर्निशि। अशेत शयनस्थले मृदुनि गूढ गूढां गनाघनस्तनभुजाननस्पर्शलब्धनिद्रासुखः॥५ इसी प्रकार आगे के अनेक प्रसंगों में भी संयोग एवं वियोग शृंगार का निरूपण मिलता है। सूरसागर : सूरसागर में वर्णित संयोग श्रृंगार में दानलीला, पनघटलीला, रासलीला, हिंडौला, वसन्तलीला एवं मानलीला के प्रसंग आते हैं जबकि विप्रलम्भ शृंगार में अक्रूर का आगमन तथा श्री कृष्ण का मथुरागमन व सम्पूर्ण भ्रमरगीत प्रसंग का समावेश होता .. सूर ने प्रेमानुभूति का बड़ा सजीव व मार्मिक वर्णन किया है। गोपियों का प्रेम बचपन से ही अंकुरित होकर पल्लवित दिखाई देता है। प्रेमानुभूति की परिपुष्टता में नायकनायिका का मिलन होता है। एक दिन कोई गोपी कृष्ण को अपनी गाय दुहाने ले गयी। राधा भी श्री कृष्ण के दर्शन के लोभ से वहाँ पहुँच गई। श्री कृष्ण को देखकर वह भावविभोर हो गई। उसने अपने तन की सुधि को भी खो दिया तथा वह अपना सर्वस्व श्री कृष्ण पर न्यौछावर कर बैठी। देखिये कवि के शब्दों में- . धेनु दुहन जब स्याम बुलाई। स्रवन सुनत तहँ गई राधिका, मन हर लियो कन्हाई॥ सखी संग की कहति परस्पर, कहँ यह प्रीति लगाई। यह वृषभानु-पुरा ये ब्रज मै, कहाँ दुहावन आई॥ मुख देखत हरि को चकित भई, तन की सुधि बिसराई। सूरदास प्रभु कै रस बस भई, काम परी कठिनाई॥१६