Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ (क) मुरली सुनत अचल चले। थके चर जल झरत पाहन विकल पृच्छ फलै॥ * पय स्रवन गोधननि थन है प्रेम पुलकित गात। झुरे द्रुम अंकुरित पल्लव विटप चंचल पात॥(पद सं० 1686) (6) अन्योक्ति अलंकार : जहाँ उपमेय का वर्णन करने के लिए उपमान का ही वर्णन किया जाता है परन्तु लक्ष्य उपमेय का ही होता है वहाँ अन्योक्ति अलंकार होता है। दोनों ग्रन्थों का एक-एक उदाहरण देखियेहरिवंशपुराण : अलंकरिष्यत्यकलंकधीः कुलं जगत्त्रयं चात्र जगद्गुरुर्गुणैः। गवां कुलं वा वृषभो वृषेक्षणावृषेक्षणः स्कन्धधृतिः सुतस्तक॥ महावलेपानखिलाननेकपान् करिष्यते सिंहवदुज्झितोन्मदान्।(३७/२८-२९) जिनसेनाचार्य के इस वर्णन में "हाथी" अनेक जीवों की रक्षा तथा जगत के इच्छानुरूप अधिपत्य का परिचायक है। इसी प्रकार बैल निर्मल बुद्धि, उज्ज्वल नेत्र तथा उन्नत कंधों का बोधक माना गया है। सूरसागर :- . अद्भूत एक अनूपम बाग। जुगल कमल पर गज बर क्रीड़ित तापर सिंह करत अनुराग॥ हरिवर सरवर सरवर गिरिवर फूले कंज पराग। छंजन, धनुष चन्द्रमा उपर ता उपर इक मनिधर नाग॥(पद सं० 2728) इस पद में "बाग" का वर्णन किया गया है कि कमल पल्लव खिल रहे हैं। गज, सिंह आदि पशु तथा कपोत पिक खंजन आदि पक्षी विहार कर रहे हैं परन्तु यह बाग स्वयं "राधिका" का परिचायक है। कमल युगल राधिका के पैर गज नितम्ब, सिंह कटि का द्योतक है। इस प्रकार राधा के अंग प्रत्यंग सौन्दर्य वर्णन में यहाँ कमलादिक उपमानों को प्रस्तुत किया गया है। . दोनों कृतियों के अनेक स्थलों पर अन्योक्ति के ऐसे अनेक उद्धरण मिलते हैं जो अप्रस्तुत विधान में प्रस्तुत किये गये हैं। तौलनीय दृष्टिकोण से सूरसागर की अपेक्षा हरिवंशपुराण में यह अलंकार सविशेष प्रयुक्त हुआ है।