Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
View full book text
________________ जिनसेनाचार्य ने कहीं-कहीं पर सुबन्त तिड़न्त पदों का भी सुन्दर प्रयोग किया है। इनका एक उदाहरण द्रष्टव्य है कामकरीन्द्रमृगेन्द्र नमस्ते क्रोधमहाहिविराज नमस्ते। मानमहीधरवज्र नमस्ते लोभमहावापाव नमस्ते॥ ईश्वरताधरधीर नमस्ते विष्णुतया युत देव नमस्ते। अर्हदचिन्त्यपदेश नमस्ते ब्रह्मपदप्रतिबन्ध नमस्ते॥(३९/९३-९४) हरिवंशपुराण के दार्शनिक-विचारों में विवरणात्मक भाषा का प्रयोग हुआ है, जिसमें भाषागत सौन्दर्य नहीं है। कहीं-कहीं भाषा में दुर्बोधता भी आ गई है जिसमें न तो काव्योचित सरसता ही है तथा न काव्योचित भावमयता एवं कलात्मकता ही। परन्तु यह कवि की दक्षता या प्रतिभा के अभाव का कारण नहीं वरन् उनके जैन मुनि होने के कारण दार्शनिक सिद्धान्तों के निरूपण में विवशता का कारण है। जिनसेनाचार्य की भाषा अनेक स्थलों पर समयानुसार आलंकारिक बन गई है जिसका उल्लेख हमने पिछले पृष्ठों में कर लिया है। __उपर्युक्त प्रकार से हरिवंशपुराण की भाषा अत्यन्त प्रांजल है। परन्तु जहाँ जैनधर्मगत पारिभाषिक शब्दों की अधिकता है जैसे—अनुप्रेक्षा, अणुव्रत, महाव्रत, उत्सर्पिणी, कषाय, नय, निर्जरा, संवर, आस्रव आदि, वहाँ पर भाषा दुर्बोध एवं गूढ़ हो गयी है। सूरसागर की भाषा :... महाकवि सूरदास ने सूरसागर में जिस भाषा का प्रयोग किया है, वह विशुद्ध "ब्रज" है। सूर का जीवन स्थल भी ब्रज मंडल के अन्तर्गत है अतः सूरसागर में कवि ने उसी भाषा का सुन्दर प्रयोग किया है। कई विद्वान सूर को ब्रज भाषा के संस्कर्ता मानते हैं। जो कोमलकान्त पदावली, भावानुकूल शब्द-चयन, सार्थक अलंकार योजना, धारावाही प्रवाह, संगीतात्मकता और सजीवता सूर की भाषा में है, उसे देखकर यही कहना पड़ता है कि सूर ने ही सर्वप्रथम ब्रज भाषा को साहित्यिक रूप दिया। सूर की भाषा में साधारण लोकगीत से लेकर चमत्कार प्रधान कूट पद रचना तक की विविधता दिखाई देती है। इसी कारण से कई विद्वानों ने उन्हें "ब्रज भाषा का वाल्मीकि" कहा है, जो सर्वथा उचित है। सूर की भाषा में अपने भावों को सहजरूप से अभिव्यक्त करने की अद्भुत क्षमता है। उसमें पात्र एवं परिस्थिति के अनुरूप प्रयुक्त होने की विशिष्टता है। कवि शिरोमणि सूर ने ब्रज भाषा को व्यापक बनाने के लिये उसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों के अतिरिक्त फारसी, अवधी, पंजाबी इत्यादि शब्दों का प्रयोग किया है। फारसी इत्यादि के शब्द कवि ने तत्समरूप में न लेकर तद्भव रूप में लिए है। इस प्रकार भाषा को बनाने में कवि ने महान् योग दिया है। उनकी भाषा में ओजपूर्ण - - -