Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ (2) करवत लैहों कासी। (सूरसागर पद संख्या - 3558) (3) दूध-दूध पानी को पानी। (सूरसागर पद संख्या - 4744) (4) अपनो बोयो आप लोनिए। (सूरसागर पद संख्या - 4479) (5) स्वान पुंछ कोउ कोटिक लागे सूधी कहुँ न करी। (सूरसागर पद संख्या - 4104) (6) अपनो दूध छाँड़ि के पीवे खारे कूप को बारी। (सूरसागर पद संख्या - 4598) (7) कंचन खोइ काँच लै आयौ। (सूरसागर पद संख्या - 3129) (8) जीवन रूप दिवस दस ही कौ ज्यों अंजुरी को पानी। (सूरसागर पदं संख्या - 3210) (9) लौंडी की डौड़ी जग बाजी। (सूरसागर पद संख्या - 4270) (10) जोई लीजे सोई है अपनौ। (सूरसागर पद संख्या - 2883) (11) सूर सुकृत हठि नाव चलावत ये सरिता है सूखी (सूरसागर पद संख्या - 4175) (12) जहीं व्याह तहँ रीति। (सूरसागर पद संख्या - 3783) (13) खर को कहा अरगजा लेपन मरकत भूषन अंग।(सूरसागर पद संख्या - 332) (14) कैसे समहिंगे एक म्यान दो खांड़े। (सूरसागर पद संख्या - 4222) (15) जूठो खैये मीठे कारन। (सूरसागर पद संख्या - 3559) (16) लघु अपराध दास को त्रसि ठाकुर को सब सौंहे। (सूरसागर पद संख्या - 4583) (17) काटकु अम्ब बबूर लगावहुँ। (सूरसागर पद संख्या - 4239) (18) प्रेम कथा सोइ पै जानै जापै बीती होरे। (सूरसागर पद संख्या - 4239) (19) सूर स्वभाव तजै नहिं कारों कीने कोटि उपाय। (सूरसागर पद संख्या - 4160) (20) लै आये नफा जाति कै सवै वस्तु अकरी। (सूरसागर पद संख्या - 4694) (21) सूरी के पातन के बदले को मुक्ताहल दै हैं // (सूरसागर पद संख्या - 4222) उपर्युक्त प्रकार से दोनों ही कृतियों में अपनी-अपनी भाषा, परम्परा, लोकसंस्कार एवं लोकाचार की भिन्नता के आधार पर सूक्तियाँ, मुहावरों तथा लोकोक्तियों का प्रयोग मिलता है। दोनों ही कवियों ने इनका सफल प्रयोग कर अपनी भाषा को सशक्त बनाया है। इसके प्रयोग से विद्वान् कवियों का पाण्डित्य, कवित्व शक्ति की विलक्षणता तथा उनके लोक के ज्ञान का सुन्दर परिचय मिलता है।