Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ (48) धिक् क्रोधं स्वपरापकारकरणं संसारसंवर्धनम् / (61/108) (निज तथा पर के अपकार का कारण तथा संसार को बढ़ाने वाले इस क्रोध को धिक्कार है।) (49) निरस्यति पयस्तृष्णां स्तोकां वेलामिदं पुनः।। जिनस्मरणपानीयं पीतं तां मूलतोऽस्यति॥ (62/24) (वह पानी तो थोड़े समय तक के लिए प्यास को दूर करता है पर जिनेन्द्र भगवान् का स्मरण रूपी पानी पीते ही उस तृष्णा को जड़ मूल से नष्ट कर देता है।) (50) दुर्लङ्घया भवितव्यता। (62/44) (होनहार अलंघनीय होता है।) (51) करोति सज्जनो यत्नं दुर्यशः पापभीरुकः। दैवे तु कुटिले तस्य स यत्नः किं करिष्यति // (62/43) ... (अपयश और पाप से डरने वाला सज्जनपुरुष बुद्धिपूर्वक प्रयत्न करता है परन्तु दैव के कुटिल होने पर उसका वह यत्न क्या कर सकता है?) . (52) सुखं वा यदि वा दुःखं दत्ते कः कस्य संसृतौ। __मित्रं वा यदि वामित्रः स्वकृतं कर्म तत्त्वतः॥ (62/51) (संसार में कौन किसके लिए सुख देता है अथवा कौन किसके लिए दुःख देता है और कौन किसका मित्र है अथवा कौन किसका शत्रु है, यथार्थ में अपना किया हुआ कार्य ही सुख या दुःख देता है।) (11) सूरसागर : सूरसागर में प्राप्त मुहावरों एवं लोकोक्तियों की लम्बी सूची है। कवि ने इनका प्रयोग भ्रमरगीत प्रसंग में सर्वाधिक किया है। गोपियों द्वारा प्रेमभक्ति की स्थापना तथा उसके साथ ही उद्धव, कृष्ण व कुब्जा को लक्ष्य करके कही गई अनेक उक्तियाँ उत्तम मुहावरों एवं लोकोक्तियों के उदाहरण हैं। मानलीला एवं मुरली के प्रति गोपियों के वचन व नैन-समय के पदों में भी इसका सहज प्रयोग मिलता है। सूरसागर में प्रयुक्त कतिपय मुहावरे :(1) सहद लाइ कै चाटौं। (सूरसागर पद संख्या - 3926) (2) हंस काग के संग। (सूरसागर पद संख्या - 3418) (3) अंग आगि बई। (सूरसागर पद संख्या - 3108) (4) हियरौ सुलगावत। (सूरसागर पद संख्या - 3545)