Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ श्री कृष्ण का बाल सौन्दर्य : बरनौ बाल-वेष मुरारि। चकित जित-तित अमरमुनि गन नंदलाल निहारी। . केस सिर बिन बचन के चहुँ दिसा छिटके झारि। सीर पर धरि जटा मनु सिस-रूप कियो त्रिपुरारि॥ सदन रज तन स्याम सोभित सुभग इहिं अनुहारि। मनहुं अंग बिभूति राजित संभु सो मधुहारि॥(पद सं० 787) राधा का यौवन-सौन्दर्य : चंपक कनक कलेवर की दुति, ससिन बदन समतारि। खंजरीट मृग मीन की गुरुता, नैननि सबै निवारी॥ मृग नृप खीन सुभग कटि राजित जंध जुगल रंभा री। अरुन रुचिर जु बिडाल रस सम चरन तली ललितारि॥(पद सं० 1815) प्रकृति सौन्दर्य-वर्षा ऋतु वर्णन : सीतल बूंद पवन पूरवाई। जहाँ तहाँ तै उमड़ि घुमडि घन कारी घटा चहूं दिसि धाई॥ भीजत देखी राधा माधव लै कारी कामरी उढ़ाई। अति जल भीजिं चीरकर टपकत ओर सबे टपकत अम्बराई॥... (पद सं० 2608) अन्त में सूर के वर्णन कौशल के बारे में कहा जा सकता है कि कवि ने मानवीय सौन्दर्य एवं प्राकृतिक सौन्दर्य के जो विविध चित्र प्रस्तुत किये हैं, वे उनके काव्य प्रतिभा के ज्वलन्त उदाहरण हैं। सूरसागर का वर्ण्य-विषय सीमित रहा है अतः इसमें प्रबन्ध काव्य जैसे विविध वर्णनों का समावेश नहीं हो सकता। परन्तु सूर ने जिसका भी वर्णन किया है, उसे अति मोहक एवं भावोद्दीपक स्वरूप प्रदान किया है। निष्कर्ष :____ हरिवंशपुराण और सूरसागर में जो विविध वर्णन दृष्टिगोचर होते हैं, वे कृतिकारों की संवेदनशीलता, अद्भुत-कल्पना, कुशलता, भाव-सम्पन्नता, सौन्दर्यप्रियता एवं प्रकृति प्रेक्षणता के परिचायक हैं। आचार्य जिनसेन के पास प्रबन्ध महाकाव्य के चित्रण की विस्तृत भाव-भूमि होने के कारण उनके वर्णन विशदता को प्राप्त कर गये हैं जबकि सूरसागर में वर्णनों की विशालता के लिए पर्याप्त स्थान नहीं था। परन्तु सूर ने जिस क्षेत्र में झाँका है तथा उसका चित्रण किया है, वह गहनता एवं मार्मिकता को प्राप्त कर गया है। युद्ध वर्णनों में सूर का मन नहीं रमा है जबकि जिनसेनाचार्य 2980 - -