Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ थी मानो वर्षा रूपी स्त्री के चले जाने पर एक दूसरी अपनी ही स्त्री आयी हो अर्थात् वह शरद् ऋतु किसी स्त्री के समान जान पड़ती थी। क्योंकि जिस प्रकार स्त्री कमल के समान सुख से युक्त होती है, उसी प्रकार वह शरद् ऋतु भी कमल रूपी मुख से सहित थी, जिस प्रकार स्त्री लाल-लाल अधरोष्ठ से युक्त होती है, उसी प्रकार वह शरद्-ऋतु भी बन्धूक के लाल-लाल फूल रूपी अधरोष्ठ से युक्त थी। जिस प्रकार स्त्री हाथ में चामर लिए रहती है, उसी प्रकार वह शरद्-ऋतु भी काश के फूल रूपी स्वच्छ चामर लिये थी और जिस प्रकार स्त्री उज्ज्वल वस्त्रों से युक्त होती है, उसी प्रकार वह शरद् भी उज्ज्वल मेघ रूपी वस्त्रों से युक्त थी। शरद्-ऋतु रूपी स्त्री के तट रूपी नितम्ब से जलरूपी चित्र-विचित्र वस्त्र नीचे खिसक गये थे, जो भँवररूपी नाभि से सुन्दर थी, मीनरूपी चंचल नेत्रों से युक्त थी और फेनावलीरूपी चूड़ियों से युक्त तरंगरूपी चंचल भुजाओं से सहित थी, ऐसी नदीरूपी स्त्रियाँ क्रीड़ाओं के समय इनटः, हृदय हरने लगी। ___ सौन्दर्य वर्णन में हरिवंशपुराण में अनेक सौन्दर्यों का वर्णन हुआ है। स्त्री-सौन्दर्य वर्णन में तो कवि ने बहुज्ञता प्राप्त की है। यहाँ हम श्री कृष्ण की छोटी बहिन का नखशिख सौन्दर्य वर्णन उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत कर रहे हैं अथ मधुसूदनावरजया वरया जगतामवितथकन्यया शशिविशुद्धयशोधरया। प्रथितसुदुर्मप्रथमयौवनभूरिभरः प्रकटमभारि हारिगुणभूषणभूषितया॥ नखमणिमण्डलेन्दुललितांगुलिपल्लवयोरकृतकरक्तताहसितभास्वदलक्तकयोः। मृदुपद्मयोः प्रपदभागसमोन्नतयोर्जगति यदीययोरुपमयापगतं त्रपया॥ दृढगुणगूढगुल्फनिजजानुमनोहरयोः प्रतिपदमानुपूर्व्यपरिवृत्तविलोमशयोः। . निरुपमजंघयोर्जघनभूरिभरक्षमयोः सविरसमल्लयोर्न हि यदीयकयोरुपम्॥ अर्थात् - अथानन्तर कृष्ण की छोटी बहिन जगत में उत्तम चन्द्रमा के समान निर्मल यश को धारण करने वाली एवं मनोहर गुण रूपी आभूषणों से भूषित यशोदा की पुत्री ने अतिशय प्रसिद्ध प्रथम यौवन को धारण किया। जिनके अंगुलिरूपी पल्लव श्रेष्ठ नखरूपी चन्द्रमण्डल से सुशोभित थे, जिन्होंने अपनी स्वाभाविक ललाई से देदीप्यमान महावर की हँसी की थी, जो अग्र भाग में समान रूप से ऊँचे उठे हुए थे, ऐसे उसके कोमल चरण-कमलों की उपमा उस समय लज्जा से ही मानो संसार में कहीं चली गई थी। उसके कोमल चरण-कमल अनुपम थे। जो अत्यन्त मजबूत एवं गूढ गांठों और घुटनों से मनोहर थी, उत्तरोत्तर बढ़ती हुई गोलाई से सुशोभित एवं रोमरहित थी, नितम्बों का बहुत भारी भार धारण करने में समर्थ थी और जो परस्पर के प्रतिस्पर्धी मल्ल के समान जान पड़ती थी, ऐसी उसकी अनुपम जंघाओं की उस समय कहीं उपमा नहीं रही। उसके दोनों उरू अत्यन्त कोमल, गोल और शुभ्र थे, जो हाथी की सूंड.और गोल कदली