Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ संदेह : किसी एक वस्तु को देखकर उसके सम्बन्ध में जहाँ संदेह बना रहता है कि वह कौनसी वस्तु है, वहाँ सन्देह अलंकार होता है। दोनों कवियों ने इस अलंकार का सुन्दर प्रयोग किया है। एक-एक उदाहरण द्रष्टव्य हैहरिवंशपुराण : बहुत्रिदशपङ्क्तिभिः प्रमदपूरिताभिर्नभः स्फुरन्मणिगणोज्ज्वलत्कलशपाणिभिः सर्वतः। .. सुमेरुगिरिपञ्चमाम्बुनिधिमध्यमध्यासितं रराज बहुरज्जुभिस्तदिव नीयमानं तदा॥(३८४९) सूरसागर : गोपि तजि लाज संग स्याम-रंग भूली। पूरन मुख चंद देखि, नैन कोई फूली॥ कै धौं नव जलद स्वाति चातक मन लाए। किधौं बारि बूंद सीप हृदय हरष पाए॥(पद सं० 1290) .. हरिवंशपुराण की अपेक्षा सूरसागर में सन्देह अलंकार का अत्यधिक सफल प्रयोग हुआ है। महाकवि सूर ने इसे बड़े ही स्वाभाविक ढंग से प्रयुक्त किया है जो प्रभावोत्पादकता के साथ भाव-निष्पत्ति में सहायक है। (8) अनन्वय अलंकार : इस अलंकार में अन्य उपमान का सम्बन्ध नहीं होता वरन् उपमेय ही उपमान होता है। उपमा-अलंकार की भाँति इस अलंकार का भी दोनों कवियों ने भाव-व्यंजना में प्रयोग किया है। यथाहरिवंशपुराण : अनेकरथचक्रचूर्णि विजिगीषुतेजोहरं निरीक्ष्य शिशुपालघाति चरितं हरेराहवे। वपुः स्वमुपसंहरन् करसहस्रतीक्ष्णोऽप्यरं गतोऽस्तगिरिवरं ग्रहणशंकयेवांशुमान्॥(४२/९८) सूरसागर : नख-सिख शोभा मोपे वरनी नहि जाइ। तुम सो तुम ही राधा स्यामहिँ मन माइ॥(पद सं० 3446) प्रतीप अलंकार :