Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ काम तनु दहत नहिं धौरधारे। कहुँ बैठत बार बारे॥४ स्पष्ट है कि सूर ने चौपाई-पद्धति का सफलता व कुशलता से प्रयोग कर इस पद्धति को आगे बढ़ाया है। अन्य छंद : सूरदास संगीत के आचार्य एवं विलक्षण प्रतिभा सम्पन्न कवि थे। अतः नवीन छंदों का निर्माण करना इनके लिए स्वाभाविक था। कुछ छन्दों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार लान्यौ। (1) कुंडल : इस छंद में 12, 10 के विराम से 22 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में दो गुरु होते हैं। सूरसागर में इस छंद का प्रयोग प्रचुर मात्रा में मिलता है। यथा तरुवर तब इक उपारि, अनुमत कर लीन्यौ। किंकर कर पकरि बान, तीन खंड कीन्यौ॥५ (2) सार :___इस छन्द में 16, 12 के विराम 28 मात्राएँ होती हैं। चरणान्त में दो गुरु होते हैं। जैसे पाई-पाई है रे भैया, कुंज पुंज में टाली। अबकै अपनी हटकि चरावहुँ, जै है भटकी घाली॥६ (3) विष्णु पद : इस छन्द में 16, 10 के विराम से 26 मात्राएँ होती हैं। सूरसागर में इस छन्द का भी प्रयोग अधिक है। यथा ब्रज वनिता सत जूथ मंडली, मिलि-कर परस करै। भुज मृनाल-भूषन तोरन जुत, कंचन खंभ धरे॥ (4) लावनी : इसमें 16, 14 के विराम से 30 मात्राएँ होती हैं। सरस प्रसंगों में कवि ने इस छन्द का प्रयोग किया है। जैसे ब्रज घर-घर आनन्द बढ्यौ अति, प्रेम पुलक न समात हिए। जोकौं नेति-नेति स्रुति गावत, ध्यावत सुरमुनि ध्यान धरे॥८ (5) समान सवैया :== =280