Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ सूर स्याम यह उत्तर बनायौ, चींटी काढत पानि।। वात्सल्य रस के निरूपण में सूरदास जिनसेनाचार्य से बहुत आगे हैं। उन्होंने वात्सल्य रस के जैसे भावपूर्ण चित्र अंकित किये हैं, उनका हरिवंशपुराण में अभाव है। सूरसागर में स्थान-स्थान पर नन्द-यशोदा के वात्सल्यसिक्त-भावों की प्रभावपूर्ण अभिव्यंजना मिलती है जिससे यह प्रतीत होता है कि जहाँ सूर का वर्णन अधिक प्रभावोत्पादक है, वहाँ हरिवंशपुराण का यह चित्रण मात्र वर्णनात्मक लगता है। श्रृंगार रस : सूर के श्रृंगार के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने इसे "रस-राजत्व" प्रदान किया है। गोपियों के साथ कृष्ण का मधुर भाव जीवन प्रभात से ही विकसित होकर संभोग की विविध लीलाओं में शनैः-शनै पुष्ट होकर अन्त में विप्रलम्भ की आँच में निरखकर परमोज्ज्वलता प्राप्त करता है। यद्यपि जिनसेनाचार्य ने भी शृंगार रस का निरूपण किया है परन्तु राधा कृष्ण व गोपियों के प्रेम विकास का वह क्रमशः चित्रण नहीं है। सूर का श्रृंगार मनोवैज्ञानिक है जबकि जिनसेनाचार्य ने यत्र-तत्र वर्णित कर इसके महत्त्व को बढ़ाया है। हरिवंशपुराण : एक स्थल पर कुमार कृष्ण गोप-बालाओं के साथ रास-क्रीड़ा कर रहे हैं। गोपियाँ प्रेमोन्माद में उन्मत्त हो उनसे स्पर्श सुख की प्राप्ति कर रही है। उनका संयोग प्रसन्नतादायक है जबकि वियोग विरहजन्य सन्तापयुक्त दुःखदायी है। .. स बालभावात्सुकुमारभावस्तथैवमुद्भिन्नकुचाः कुमारः। सुयौवनोन्मादभराः सुरासैररीरमत्केलिषु गोपकन्याः॥ करांगुलिस्पर्शसुखं स रासेष्वजीजनद्गोपवधूजनस्य। सुनिर्विकारोऽपि महानुभावो मुमुद्रिकानद्धमणियथार्थ्यः॥ यथा हरौ भूरिजनानुरागो जगाम वृद्धिं हृदि वृद्धिसूची। तथास्य तेने विरहानुरागो विहारकाले विरहातुरस्य॥२ रुक्मिणी हरण प्रसंग में जब श्री कृष्ण रुक्मिणी को देखते हैं तो उनके हृदय में अनुराग बढ़ जाता है। तदनन्तर वे लज्जायुक्त रुक्मिणी को अपनी दोनों भुजाओं से उठाकर रथ में बिठाते हैं उस समय काम की व्यथा से पीड़ित उनका सर्वांगीण स्पर्श सुख परस्पर आनन्द प्रदान करने वाला होता है। उन दोनों के मुख से निकलने वाला सुगन्धित श्वास एक दूसरे को सुगन्धित करता है, जो वशीकरणमन्त्र जैसा प्रतीत हो रहा है 260 -