Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ जिनसेनाचार्य को काव्यशास्त्र की भाव सीमा के संकुचित क्षेत्र में रहकर देखना उचित नहीं है क्योंकि उनकी कृति में सभी प्रकार के रसों का सुन्दर समावेश दिखाई पड़ता है। इन्होंने श्री कृष्ण चरित्र के निरूपण में उनके योद्धा तथा पराक्रमी स्वरूप का एवं आध्यात्मिक ज्ञाता रूप का विशेष चित्रण किया है। उन्हें श्री कृष्ण का यही रूप अधिक प्रिय है। अतः उन्होंने श्री कृष्ण के बाल्य एवं यौवन लीला वर्णन में भी उनकी वीरता, अलौकिकता का वर्णन किया है। हरिवंशपुराण के युद्ध वर्णनों में वीर, बीभत्स, रौद्र आदि रसो का निरूपण है तो नेमिनाथ के वैराग्य तथा बलरामजी का विलाप प्रसंग करुण रस से भरा पड़ा है। द्वारिका निर्माण और यदुवंशियों के प्रभाव वर्णन में अद्भुत रस का प्रकर्ष है जबकि काव्य का अन्त शांत रस में होता है। कवि ने श्री कृष्ण की बाल लीला में वात्सल्य रस का भी. निरूपण किया है। इस प्रकार हरिवंशपुराण में सभी रसों का मनोरम सामंजस्य दिखलाई पड़ता है। . सूरसागर में कवि ने श्री कृष्ण के चित्रण में उनके शील, शक्ति तथा सौन्दर्य वर्णन में केवल सौन्दर्य का निरूपण सविशेष किया है। सूर को द्वारिकेश कृष्ण की अपेक्षा यशोदानन्दन एवं गोपी-वल्लभ कृष्ण ही अधिक प्रिय रहे हैं। इसीलिए उन्होंने श्री कृष्ण के बाल्य एवं यौवन से संबद्ध भावों का ही सूक्ष्म अंकन किया है। वात्सल्य एवं शृंगार की सूक्ष्मतम अनुभूतियों के गंभीरतम भावों एवं विविध व्यापारों का चित्रण ही उनके काव्य का मुख्य विषय रहा है। इस सम्बन्ध में आचार्य रामचन्द्र शुकल के विचार द्रष्टव्य हैं"वात्सल्य एवं शृंगार के अंगों का जितना अधिक उद्घाटन सूर ने अपनी बंद आँखों से किया, उतना किसी कवि ने नहीं। इन क्षेत्रों का कोना-कोना वे झाँक गए। उक्त दोनों के प्रवर्तक रति भाव के भीतर की जितनी मानसिक वृत्तियों और दशाओं का अनुभव एवं प्रत्यक्षीकरण सूर कर सके, उतनी का कोई और नहीं। हिन्दी साहित्य में शृंगार का रसराजत्व यदि किसी कवि ने पूर्णरूप से दिखाया है तो सूर ने।"३ इन दोनों रसों के अलावा भी उनके काव्य में अन्य रस भी मिलते हैं, जो यत्रतत्र बिखरे पड़ें हैं। तात्पर्य यह है कि दोनों कवियों में श्री कृष्ण के शील, शक्ति एवं सौन्दर्य का कम-ज्यादा वर्णन है। दोनों ने श्री कृष्ण की अद्भुत लीलाओं का चित्रण किया है जिसमें काव्य के सभी रसों का प्रकर्ष दृष्टिगोचर होता है। अतः इनके काव्य में निरूपित रसों का तुलनात्मक अध्ययन निम्न क्रम से किया जा रहा है। वात्सल्य रस :..सूरसागर तथा हरिवंशपुराण के कवियों ने श्री कृष्ण के जन्म पर वसुदेव की * चिन्ता, कृष्ण को नंद के यहाँ पहुँचाना, नंद के घर उत्सव एवं गोप-गोपिकाओं के आनन्द