Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ (ख) विष्णु विधि रुद्र मम रूप में तीन हूँ। दच्छ सों वचन सह कह सुनायों। श्री कृष्ण की अलौकिकता का महिमामय अवतरण सूरसागर में सर्वत्र दिखाई देता है, जो शुद्धाद्वैत के मतानुसार स्वीकार किया गया है। वैष्णव परम्परा में यह विशिष्टता सर्वत्र संवाहक है। चाहे महाभारत हो या हरिवंशपुराण, श्रीमद्भागवतपुराण हो या अन्य कोई पौराणिक कृति, सभी में इसी अवतारवाद की अवधारणा के अनुसार कृष्ण को परब्रह्म के रूप में निरूपित किया है। हरिवंशपुराण और अवतारवाद : जिनसेनाचार्य कृत हरिवंशपुराण में सूरसागर की भाँति श्री कृष्ण न तो भगवान् के अवतार हैं तथा न ही स्वयं भगवान्। वे शलाकापुरुष के रूप में निरूपित हैं। जैन-दर्शन में अवतारवाद की अवधारणा मान्य नहीं है, अतः स्वाभाविक है कि पुराणकार ने इसी मान्यता को ध्यान में रखा हो। जैन मतानुसार लोक में विशिष्ट अतिशयों से सम्पन्न पुरुष कालक्रम से जन्म लेते रहते हैं। परम्परागत एक काल-चक्र में त्रिषष्टि शलाकापुरुष जन्म लेते रहते हैं। इनकी त्रिषष्टि संख्या निम्न प्रकार से है। तीर्थंकर चौबीस, चक्रवर्ती बारह, बलभद्र नौ, वासुदेव नौ तथा प्रतिवासुदेव नौ।८ ... जैन कृतियों में इन शलाकापुरुषों के नाम इस प्रकार हैं(१) चौबीस तीर्थंकर ऋषभदेव, अजितनाथ, सम्भवनाथ, अभिनन्दननाथ, सुमतिनाथ, पद्मप्रभ, सुपार्श्वनाथ, चन्द्रप्रभ, पुष्पदन्त, शीतलनाथ, श्रेयांसनाथ वासुपूज्य, विमलनाथ, अनन्तनाथ, धर्मनाथ, शांतिनाथ, कुन्थुनाथ, अरहनाथ, मल्लिनाथ, मुनिसुव्रतनाथ, नमिनाथ, अरिष्टनेमि, पार्श्वनाथ तथा महावीर स्वामी। (2) बारह चक्रवर्ती भरत, सगर, मघवा, सनत्कुमार, शांतिनाथ, कुन्थुनाथ, अरनाथ, सुभूम महापद्म, हरिषेण, जय तथा ब्रह्मदत्त / (3) नौ बलभद्र- अचल, विजय, सुधर्म, सुप्रभु, सुदर्शन, नान्दी, नन्दि मित्र, राम तथा बलराम। (4) नौ वासुदेव त्रिपृष्ठ, दिपृष्ठ, स्वयंभू, पुरुषोत्तम, नृसिंह, पुण्डरीक, दत्तक, लक्ष्मण तथा कृष्ण / (5) नौ प्रतिवासुदेव___ अश्वग्रीव, तारक, मेरुक, निशुम्भ, मधुकैटभ, बलि, प्रहरण, रावण तथा जरासंध।