Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ राधा-गोपी : सूर ने वल्लभ वेदान्त के अनुसार ही गोपिकाओं का परब्रह्म श्री कृष्ण की परमानन्दमयी शक्ति का निरूपण किया है। राधा को पुरुष कृष्ण की प्रकृति कहकर दोनों की एकता का निरूपण किया है।१२४ राधा को सूर ने शक्ति कहकर उन्हें देवताओं की मुनियों की स्वामिनी कहा है। उसके सौन्दर्य ने त्रिभुवन को मोहित कर रखा है। नीलाम्बर पहिरे तनुभामिनि, जनुधन दमकति दामिनि। सेस, महेस, गनेस, सुकादिक नारदादि की स्वामिनि।१२५ "राधा" जगज्जननी है, वह जगदीश को प्यारी है। वृन्दावन में नित्य गोपाल के साथ विहार करने वाली अगणित की गति, भक्तों की स्वामिनी, मंगलदायिनी, अशरण-शरणी, भव-भय-हरनी एवं वेद तथा पुराणों में जिसकी अघा-अघाकर स्तुति की गई है वह परमेश्वरी श्री कृष्ण की आद्यशक्ति एवं स्वामिनी राधा ही है।१२६ जंग नायक जगदीश प्यारी जगत जननी जगरानी। .. नित विहार गोपाल लाल संग वृन्दावन रजधानी। अगतिन की गति भक्तन की प्रति राधा मंगलकारी। . . असरन सरनी भव भयहरनी वेद पुरान बखानी।१२७ . सूरसागर "राधा" के साथ गोपिकाओं के कई भाव निरूपित हुए हैं। वे नित्य गोलोक में होने वाली नित्यरास में भगवान् कृष्ण की आनन्द प्रसारिणी शक्तियाँ हैं। गोपियाँ कहीं पर स्वकीया हैं तो कहीं पर परकीया स्वरूप में हैं। गोपी-भाव के अन्तर्गत सूर ने दो रूप स्वीकार किए हैं। एक ईश्वर की आनन्द सृष्टिकारिणी परमात्म शक्ति का रूप एवं दूसरा कान्ता भाव से भगवान् श्री कृष्ण की भक्ति करने वाले अनन्य भक्तों का रूप।१२८ वृन्दावन-गोलोक : शुद्धाद्वैत में लीलाधाम का विशेष महत्त्व दिया गया है। यह लीलाधाम वृन्दावन या ब्रजभूमि है। वृन्दावन भगवान् के नित्य लीलाधाम का, गोलोक का अवतरित रूप माना जाता है। भगवान् का अपने लीलाधाम वृन्दावन से कभी भी वियोग नहीं होता है, यहाँ वे नित्य लीला करते हैं। माधुर्य भक्ति की पूर्णता भी वृन्दावन में ही है। ___ सूर ने ब्रह्मा के मुख से अवतीर्ण ब्रज की शोभा का जो वर्णन किया है, वह अप्रतिम है।१२९ लीलाधाम के सम्बन्ध में शुद्धाद्वैत मत की दार्शनिक मान्यता को सूर ने बड़ी खूबी के साथ भावात्मक स्वरूप प्रदान किया है। ब्रज की शोभा का यह पद द्रष्टव्य है जिसमें श्री कृष्ण उद्धव के समक्ष अपना हृदय खोलकर रख देते हैं। भावात्मक