Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ 17. अनेक लेख उपलब्ध हैं। परन्तु इससे इतना ही मालूम होता है कि मुनि उस अन्वय के थे जो वर्धमानपुर या बढवाण से चलकर बदनावर पहुंचा था। जिस तरह पुन्नाट से बढ़वाण आकर जिनसेन का मुनिसंघ पुन्नाटान्वयी हुआ। 14. हिन्दू भारत का उत्कर्ष - ले० सी०वी० वैद्य - पृ० 175 15. इण्डियन एण्टिक्वेरी जिल्द - 5, पृ० 146 / / 16. एपिग्राफिया इण्डिका - जिल्द - 6, पृष्ठ 269 हरिवंशपुराण का सांस्कृतिक अध्ययन - डॉ० पी०सी० जैन - पृ० 21-22 18. जैन साहित्य का इतिहास - नाथूराम प्रेमी - पृ० 118 19. हरिवंशपुराण - सर्ग - 66/5 मूलतई (बेतूल - म०प्र०) में राष्ट्रकृटों की जो दो प्रशस्तियाँ मिली हैं उनमें दुर्गराज, गोविन्दराज, स्वामिकराज और नन्नराज नाम के चार राष्ट्रकूट राजाओं के नाम दिये हैं। सौन्दति के राष्ट्रकूटों की दूसरी शाखा के भी एक राजा का नाम नन्न था। बुद्धगया से राष्ट्रकूटों का एक लेख मिला है उसमें भी पहले राजा का नाम नन्न है। ओझाजी ने दन्तिवर्मा का समय वि०सं० 650 के आसपास माना है। उनके बाद इन्द्रराजा गोविन्दराज कर्कराज हुए। कर्क के इन्द्र, ध्रुव, कृष्ण और नन्नराज चार पुत्र हुए। हरिवंशपुराण और कथाकोश में वर्णित नन्नराज वसति इन्हीं नन्नराज के नाम से होंगी। 21. हरिवंशपुराण का सांस्कृतिक अध्ययन - डॉ० पी०सी० जैन - पृ० 25 22. हरिवंशपुराण 23. तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा - डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री - पृ० 212 24. आदिपुराण-जिनसेन - प्रथम सर्ग श्लोक - 52 25. जैन साहित्य का इतिहास - पं० नाथूराम प्रेमी, संस्करण - 1956, पृ० 123 26. तीर्थंकरण महावीर स्वामी और उनकी आचार्य परम्परा - डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री - पृ० 277 हरिवंशपुराण - प्रस्तावना - पृ० 15 28. विशेषवादिर्गुम्फिश्रवणाबद्धयः। अक्लेशादधिगच्छति विशेषाभ्युदयं बुधाः॥ पार्श्वनाथ चरित - 29 29. चन्द्रांशशुभ्रयशसं प्रभाचन्द्रकविं स्तुवे। कृत्वा चन्द्रोदयं येन शश्वदाह्लादितं जगत्। आदिपुराण - जिनसेन - 37 30. हरिवंशपुराण - सर्ग - 1/39 31. हरिवंशपुराण - सर्ग - 45/45-47 32. हरिवंशपुराण - सर्ग - 66/25-33 1 - -