Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ यथा हरौ भूरिजनानुरागो जगाम वृद्धिं हृदि वृद्धिसूची। तथास्य तेने विरहानुरागो विहारकाले विरहातुरस्य॥ सूरसागर में संयोग एवं वियोग के अनेक मनोभावों युक्त रास-लीला को वर्णित किया गया है वैसे ही हरिवंशपुराण भी श्री कृष्ण की इस मधुर लीला को स्वीकारता है। जिनसेनाचार्य ने इस वर्णन में सूरदास जैसे अत्यन्त विस्तृत एवं वैदग्ध्य युक्त चित्रण प्रस्तुत नहीं किये हैं। परन्तु उनका रासलीला-चित्रण तथा श्री कृष्ण की निर्लिप्तता का भाव साम्य रखता है। रासलीला का प्रतीक अर्थ : श्री कृष्ण की रासलीला के सम्बन्ध में उन पर अनेक आक्षेप लगाये जाते हैं परन्तु वास्तव में यदि रासलीला के प्रतीक अर्थ को समझा जाय तो यह निर्विवाद सिद्ध होता है कि यह लौकिक कामनाओं से युक्त न होकर जीव और ईश्वर का अलौकिक मिलन है। अनेक दार्शनिक ग्रन्थों में इसके प्रतीकार्थ का सविस्तार विवेचन मिलता है। उन्होंने रासलीला को ब्रह्मानन्द से उत्कृष्ट मानकर इसे भजनानंद की संज्ञा दी है। भागवत की रास पंचाध्यायी को भक्तगण भागवत के पाँच प्राण मानते हैं। गोपियों को "वल्लभाचार्य" ने भगवान् की सिद्धि स्वरूपा शक्तियाँ माना है तथा इनके साथ क्रीड़ा करने को भगवान् का अपरोक्ष-भोग कहा है। गोपियों का परिवार व समाज व्यवहार को त्याग कर जाना उनका धर्म, अर्थ तथा ,काम का परित्याग है। भगवान् के रमणरूपी फल को प्राप्त करने के लिए विवेक और वैराग्य साधनों की सिद्धता आवश्यक है। गोपियों ने अपने गृह-व्यवहारों का त्याग कर इन्हीं विव और वैराग्य साधनों को सिद्ध किया।६१ गौडीय सम्प्रदाय के अनुसार ह्लादिनी शक्ति की वृत्ति-विशेष द्वारा श्री कृष्ण एवं गोपियों के परस्पर प्रीति-विधान का नाम रमणलीला है। जीव को संसार में भेजकर वहाँ दुःख भोगने के द्वारा संसार की अनित्यता और असारता को अच्छी तरह समझकर उसे सुखमय चिद्घन स्वरूप आत्मस्वरूप में सुप्रतिष्ठित करने में प्रधान हेतु रूप उसकी सुखानुभूति की जो इच्छा है-यह इच्छा ही भगवान् की ह्लादिनी शक्ति की वृत्ति विशेष है।६२ / / पनघट लीला : रासलीला के पश्चात् कृष्ण की मधुरलीलाओं में दूसरी लीला पनघट लीला है। सूरसागर में रास-लीला की तरह इस लीला में भी संभोग श्रृंगार के सभी भावों एवं अनुभावों की प्रभावोत्पादक अभिव्यंजना है। श्री कृष्ण की मधुर लीलाओं के वर्णन में सूरसागर हरिवंशपुराण से अत्यधिक आगे है। हरिवंशपुराण में श्री कृष्ण की रसिक लीलाओं में मात्र रासलीला का वर्णन मिलता है परन्तु सूरसागर में तो ऐसी अनेकानेक लीलाओं का सुन्दर विवेचन है। सूरसागर की ऐसी लीलाओं में पनघट-लीला भी एक है।