Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ ने सभी यादवों को तीर्थाटन की सलाह दी तथा प्रभास-क्षेत्र जाने का कहा। तब सभी अंधक व वृष्ठिण वंशी अपने साथ भाँति-भाँति के मद्य-माँस तैयार करवाकर पत्नियों के साथ प्रभास तीर्थ में रहने लगे। एक दिन उन लोगों ने वहाँ मदिरापान किया। मदिरा के मद से उन्मत्त हो यदुवंशी सात्यकि, अंधकवंशी कतवर्मा का उपहास करने लगे तथा यादव एक-दूसरे पर वाक्-बाण चलाने लगे। वहाँ क्रोधित हो सात्यकि ने कृतवर्मा का सिर काट डाला। अब तो आपस में युद्ध छिड़ गया। एक-दूसरे पर वे प्रहार करने लगे। इस भयंकर आपसी संहार में मात्र वभ्र दारुक व श्री कृष्ण ही बचे। श्री कृष्ण ने बलराम को खोजा तो वे एक वृक्ष के नीचे एकांत में ध्यान कर रहे थे। श्री कृष्ण ने बलराम जी को वहाँ देखकर दारुक को अर्जुन को सूचना देने के लिए कुरुदेश भेजा तथा वभ्र से द्वारिका जाकर स्त्रियों की रक्षा करने को कहा परन्तु एक व्याध के बाण से वभ्र का प्राणान्त हो गया। इस पर बलराम को वहीं बिठाकर श्री कृष्ण द्वारिका गये तथा वसुदेव जी से कहा कि अर्जुन के आने की प्रतीक्षा करते हुए कुल की स्त्रियों की रक्षा करें। तदुपरान्त चरण-स्पर्श कर उन्होंने कहा कि अब यादव विहीन द्वारिका में रहना कठिन है अतः वे बलराम के पास जाकर तपस्या करेंगे। वहाँ से श्री कृष्ण बलराम के पास आये तब वे योगासन की समाधि में बैठे थे। उन्होंने देखा तो उनके मुख से एक श्वेत विशालकाय सर्प निकलकर महासागर की ओर गया एवं वहाँ अपने पूर्णरूप को त्याग कर सहस्रों मस्तकों वाला हो गया है। यह देखकर श्री कृष्ण ने बलराम के परमधाम को जाने का सोच लिया। सूरसागर में वर्णित यादवों के विनाश पर अर्जुन द्वारा द्वारिका जाने का प्रसंग द्रष्टव्य है। यह कहि पारथ हरि पुर गए। सुन्यौ सकल यादव छै भए॥ अर्जुन सुनत नैन जल धार। परयौ धरनि पर खाइ पछार॥ तब दारुक संदेश सुनायौ। कह्यौ हरि जू जो गीता गायौ॥ आचार्य जिनसेन ने अपनी कृति हरिवंशपुराण में इस प्रसंग को विशदता से वर्णित किया है। यादवों के विनाश की यह घटना द्वारिका ध्वंश नामक प्रसंग में उद्धृत है। श्री कृष्ण के चचेरे भाई अरिष्टनेमि ने जैन-दीक्षा ग्रहण की थी। एक बार वे गिरनार पर्वत पर समवसरण को सुशोभित करने के लिए ठहरे। वहाँ आये बलदेवजी ने द्वारिका के नाश के बारे में उनसे पूछा, तब नेमिनाथ ने उनसे कहा कि यह पुरी बारहवें वर्ष में मदिरा के निमित्त द्वैपायनमुनि के द्वारा क्रोध वश भस्म होगी। अंतिम समय में श्री कृष्ण कौशाम्बी वन में शयन करेंगे और जरत्कुमार उनके विनाश में कारण बनेगा। - - 3 - -