Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ की प्यास एवं बलदेव द्वारा पानी लेने जाना, बलदेव का पश्चात्ताप, पाण्डवों के आने पर श्री कृष्ण का दाह संस्कार, बलदेव जी की दीक्षा एवं तप इत्यादि सभी प्रसंग जिनसेनाचार्य की मौलिकता के प्रतीक हैं। इतना सब होते हुए भी दोनों ही परम्पराओं में श्री कृष्ण का वध एक व्याध द्वारा उनके तलवे में बाण लगने से बताया है, जो दोनों की एकरूपता को प्रकट करता है। सूरसागर की अपेक्षा हरिवंशपुराण में इस घटना का जो नवीन रूप मिलता है, उससे यह प्रसंग विस्तृत हो गया है। | टिप्पणियाँ : 1. सूरसागर पद सं० 622 - पृ० 257-58 2. सूरसागर पद सं० 626 - पृ० 260 3. हरिवंशपुराण - सर्ग 35/20 - पृ० 450 4. . हरिवंशपुराण - सर्ग 35/21-25 - पृ० 450-451 5. सूरसागर पद सं० 644 - पृ० 267 सूरसागर पद सं० 651 - पृ० 271 हरिवंशपुराण - सर्ग 35/35-36 - पृ० 452 सूरसागर पद सं० 661, - पृ० 276 9. सूरसागर पद सं० 707 - पृ० 292 10. . सूरसागर पद सं० 712 - पू० 293 11. सूरसागर पद सं० 713 - पृ० 293 12. सूरसागर पद सं० 798 - पृ० 321 13. . सूरसागर पद सं० 793 - पृ० 320 14. हरिवंशपुराण - सर्ग 35/34 - पृ० 452 15. सूरसागर पद सं० 812 - पृ० 327 16. सूरसागर पद सं० 668 - पृ० 278 17. हरिवंशपुराण - सर्ग 35/42 - पृ० 453 18. कृष्णोपनिषद् - सुबोधिनी टीका - पृ० 10-11 19. मध्यकालीन कृष्ण काव्य में निरूपित जीवन मूल्य - "भावना शुक्ल" - पृ० 5. 20. .सूरसागर पद सं० 677 - पृ० 281 21.. हरिवंशपुराण - सर्ग 35/41 - पृ० 453 22... सूरसागर पद सं० 680 - पृ० 282 2016 - -