Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ परब्रह्म श्री कृष्ण ने भक्त हेतु अवतार धारण किया है। ये ही नारायण, हृषीकेश, गोविन्द और केशव हैं, ये ही सबके प्रभु और ईश्वर हैं / सूरसागर में परब्रह्म सचिदानंदघनस्वरूप के चौबीस अवतारों का संक्षेप में वर्णन मिलता है, जिनमें श्री कृष्ण का लोकरंजनकारी अवतार महत्त्वपूर्ण है। ये ही आदि निरंजन और निराकार हैं, जिन्होंने इस सृष्टि का निर्माण किया है। सूरदास जी के विनय के पदों में श्री कृष्ण के परब्रह्म एवं नारायण रूप का विशेष वर्णन हुआ है। यही परमात्मा आकाश, वायु, अग्नि, जल तथा पृथ्वी के निर्माण-कर्ता हैं। ये ही समस्त प्राणियों के अग्रज और ज्ञानियों की परमगति है। श्री कृष्ण ही जगत के सृष्टिकर्ता, संहारकर्ता एवं समस्त कारणों के कारण हैं। सृष्टि का प्रलयरूप अनादि अनंत कालचक्र श्री कृष्ण का ही स्वरूप है जिनकी शेष, महेश आदि देवता भी स्तुति करते हैं अलख निरंजन निराकार अच्युत अविनाशी। सेवत जाहिँ महेस सेस, सुर माया दासी॥१८६. इस प्रकार सूरसागर में श्री कृष्ण को परब्रह्म परमात्मा के स्वरूप में ही स्वीकार किया गया है। वैसे पुराणों में जिस रूप में श्री कृष्ण का नारायण रूप चित्रित हुआ है वैसा वर्णन सूरसागर में नहीं मिलता है परन्तु श्री कृष्ण की समस्त अलौकिकता में उनका यही रूप दृष्टिगोचर होता है। इतना होने के उपरान्त भी सूर की यह विशेषता रही है कि उन्होंने श्री कृष्ण के चरित्र को एक नवीन मोड़ देकर मानव के अति निकट लाया है। हरिवंशपुराण : सूरसागर की भाँति हरिवंशपुराण में भी श्री कृष्ण के नारायण स्वरूप के दर्शन होते हैं। पुराणकार के अनुसार श्री कृष्ण नौवें नारायण थे। जब श्री कृष्ण जरासंध के साथ युद्ध कर रहे थे, उस समय आकाशवाणी हुई थी कि श्री कृष्ण नौवें-नारायण के रूप में प्रकट हुए हैं। व्योग्नि दुन्दुभयो नेदुरपतन्पुष्पवृष्टयः। नवमो वासुदेवोऽयमिति देवा जगुस्तदा॥१८७५२-६७ श्री कृष्ण द्वारा इसी स्वरूप को धारण करने के कारण वे जरासंध को जीत सके। उनके इस कृत्य पर अनेक विद्याधरों ने नारायण-भक्ति से प्रेरित होकर नाना प्रकार से उपहार लेकर उनको भेट प्रदान की तथा नमस्कार किया। नारायण द्वारा उनके सत्कार पर विद्याधरों ने अपना जन्म सफल माना। श्री कृष्ण ने अपने नारायण स्वरूप में जरासंध को ही नहीं वरन् देव, असुर और सम्पूर्ण दक्षिण भरत क्षेत्र जीता। पुराणकार के अनुसार उन्होंने जीतने योग्य सभी राजाओं को जीतकर कोटिक शिला की ओर गये, जिसे उन्होंने सात नारायणों से चार अंगुल ऊपर उठाया। उस विशाल शिला को उठाने से श्री कृष्ण के शारीरिक बल की जानकारी सभी को मिल गई।