Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ युद्ध में दोनों ओर से अनेक व्यूहों की रचना की गई। दोनों सेनाएँ परस्पर एकदूसरे पर घात करने के लिए उद्यत हो गई। श्री कृष्ण ने जरासंध से कहा कि अब मैं चक्रवर्ती उत्पन्न हो गया हूँ इसलिए आज से तू मेरे शासन में रह। .. परन्तु जरासंध ने उनकी एक न मानी। वह श्री कृष्ण को चक्र चलाने के लिए ललकारने लगे। इस पर महान वीर चक्रवती श्री कृष्ण ने अपना चक्र रत्न घुमाकर उसकी ओर फैंका एवं उसने तत्काल ही जाकर जरासंध की वक्षःस्थल रूपी भित्ति को भेद डाला इत्युक्ते कुपितश्चक्री चक्रं प्रभ्राम्य सोऽमचत। भूभृतस्तेन गत्वारं वक्षोभित्तिरभिद्यत॥१८०५२-८३ इस प्रकार नौवें नारायण वासुदेव श्री कृष्ण ने क्षण भर में अपने प्रतिवासुदेव जरासंध का वध कर डाला। तदनन्तर जरासंध की समस्त सेना श्री कृष्ण की आज्ञाकारिणी हो गई। राजा दुर्योधन, द्रोण, दुःशासन आदि ने संसार से विरक्त हो मुनिराज विदुर से जिनदीक्षा धारण की। तत्पश्चात् समस्त राजा-महाराजाओं ने अतिशय प्रसिद्ध श्री कृष्ण को अर्ध भरतक्षेत्र के स्वामित्व पर अभिषिक्त किया। उपर्युक्त विवेचनानुसार हरिवंशपुराण में वर्णित यह प्रसंग सूरसागर से सर्वथा भिन्न है। कंस का जरासंध का दामाद होना एवं कंस-वध पर जरासंध द्वारा यादवों पर आक्रमण में दोनों ग्रन्थ सहमत हैं। श्री कृष्ण को नौवाँ नारायण तथा वासुदेव सिद्ध करने के लिए हरिवंशपुराणकार ने इस प्रसंग को विशद तथा नव्य स्वरूप प्रदान किया है, जिसका सूरसागर में अभाव है। ___ जिनसेनाचार्य ने श्री कृष्ण एवं जरासंध के युद्ध को एक निर्णायक युद्ध बतलाया है सूरसागर में जरासंध का वध कृष्ण की सलाह पर भीम करते हैं जबकि हरिवंशपुराण में जरासंध का वध श्री कृष्ण के हाथों चक्र द्वारा होता है। जिनसेनाचार्य ने युद्ध-वर्णन में सुन्दर चित्र अंकित किए है। सुभटों की वेश-भूषा, अस्त्र-शस्त्र, युद्ध में प्रयुक्त व्यूह रचना तथा अनेक और वीरों की वीरता का वर्णन कर कवि ने इस प्रसंग की महत्ता को और बढ़ा दिया है। श्री कृष्ण का नारायण स्वरूप : वल्लभाचार्य के पुष्टिमार्ग में श्री कृष्ण को परब्रह्म माना गया है। महाकवि सूर ने अपने हित्य में कई स्थानों पर श्री कृष्ण के इस स्वरूप को चित्रित किया है। उनके अनुसार ब्रह्मा तथा शंकर भी उस ब्रह्म के माहात्म्य को नहीं समझ पाये हैं। श्रुति, आगम, निगम जिसके गुणों का पार नहीं पा सके, वही सच्चिदानंद परब्रह्म बाल-कृष्ण के स्वरूप में माँ यशोदा की गोदी में खेल रहा है।