Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ मीन सबके पीछे प्रकट होकर स्नान करती गोपियों की पीठ मलते हैं। निर्वसन गोपियाँ उन्हें लज्जित हो धिक्कारती हैं। प्रकट भए प्रभु जल के भीतर देखि सबन को प्रेम। मीड़त पीठ सबन के पार्छ, पूरण कीन्हौं नेम॥५ वे कृष्ण की यह शिकायत यशोदा से करती हैं तथा कहती हैं कि तुम्हारा सुत अब बहुत लम्पटता दिखा रहा है। परन्तु यशोदा उनकी बात नहीं मानती है। वह कहती है कि तुम मेरे लाडले पर झूठा आरोप लगाती हो, पहले भी इसे एक बार तुमने उसे ऊखल से बंधवाया था। चोरी का आरोप लगाते-लगाते उसके चरित्र पर दोष लगा रही हो बिना भीति तम चित्र लिखति हौ सो कैसँ निबहैरी। चोरी रही, छिनारो अब भयो, जान्यों ज्ञान तुम्हारौ। और गोप-सुतनि नहीं देख्यौं, सूर स्याम हैं बारो॥६ ___ इतना होने के उपरान्त भी गोपियों में श्री कृष्ण के दर्शन की लालसा रहती है। जब वे दूसरी बार स्नान करने जाती हैं, उस समय अपने वस्त्रों को घाट पर रखकर सभी सखियाँ यमुना में केली करने लगती हैं। श्री कृष्ण मौका पाकर उनके वस्त्रों को लेकर कदम्ब पर चढ़ जाते हैं सोरह सहस गोप सुकुमारी। सबके बसन हेर बनवारी। हरत बसन कछु बार न लागी। जल-भीतर जुवति सब माँगी। भूषन बसन सबै हरि ल्याए। कदम-डार जहँ-तहँ लटकाए। - ऐसौ नीप-वृच्छ विस्तारा। चीर हार धौं कितक हजारा॥७ . युवतियाँ स्नान करके जब तट के निकट आकर देखती हैं कि उनके वस्त्राभूषण कुछ भी नहीं हैं, तो उन्हें आश्चर्य होता है कि हमारे वस्त्र कौन ले गया? तब श्री कृष्ण कदम्ब की डाल पर बैठे-बैठे कहते हैं कि गोप-कुमारियो! तुम्हारा व्रत पूर्ण हुआ, अब तुम जल के बाहर आ जाओ। इस पर गोपियाँ श्री कृष्ण से अनुनय-विनय करती हैं कि हम बिना वस्त्र कैसे बाहर आयें, हमें लज्जा आती है। हमारा शरीर शीत से काँप रहा है, तुम हमारे वस्त्र वापस कर दो। अन्त में उनकी प्रार्थना पर भक्त वत्सल श्री कृष्ण प्रसन्न हो जाते हैं। सबको वस्त्र लौटाकर कदम्ब के नीचे बुलाते हैं तथा वस्त्राभूषण पहन कर घर लौटने की आज्ञा करते हैं। * . यह लीला श्री कृष्ण की कामोत्तेजना पर आधारित न होकर उनकी बाल सुलभ चपलता पर आधारित है। कई लोग इस लीला का स्थूल शृंगार अर्थ लेते हैं परन्तु यह शोभास्पद नहीं है। ... डॉ. ब्रजेश्वर शर्मा के अनुसार-"इस लीला में कृष्ण के चांचल्यपूर्ण लीला-कौतुक =999