Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ अतिमुदितसुकेतुः सत्यभामां प्रभायाः, स्वयमुपपदवत्वा गर्भजां केशवाय॥४२ 36/61 हरिवंशपुराण के अनुसार श्री कृष्ण के अन्तःपुर में सोलह हजार योग्य गुणों से युक्त रानियाँ थी, जिसमें आठ पटरानियाँ थीं। श्री कृष्ण के दूसरी पटरानी का उल्लेख इस प्रकार मिलता है कि एक दिन नारद ने श्री कृष्ण से कहा कि-विजयार्ध पर्वत की दक्षिण-श्रेणि में जम्बपुर नामक नगर में जाम्बव नाम का विद्याधर रहता है। उसकी जाम्बवती नाम की कन्या अत्यन्त रूपवती मानो साक्षात् लक्ष्मी है। वह इस समय सखियों के साथ स्नान करने गंगा में उतरी है। श्री कृष्ण ने वहाँ जाकर स्नान क्रीड़ा को प्रारम्भ करने वाली जाम्बवती को देखा। दोनों की निगाहें मिली एवं प्रेम हो गया। फलतः श्री कृष्ण उस कन्या को हर ले गये तथा उससे विधिवत् विवाह कर लिया। कन्याहरण के कारण सखियों के जोरदार रुदन के स्वर को सुनकर कन्या का पिता जाम्बव हाथ में तलवार ढाल लेकर शीघ्र ही आकाश मार्ग से चल पड़ा। आकाशगामी अनावृष्टि ने शीध्र उसके साथ युद्ध किया तथा उसे बांध दिया। इस घटना से जाम्बव को वैराग्य हो गया तथा वह वन में चला गया। उधर श्री कृष्ण जाम्बवती के साथ परमानंद प्राप्त कर द्वारिका गये। जाम्बवत्या विवाहेन परमानन्दमाश्रितः। विश्वक्सेनयुतो विष्णुभरिकामगमन्निजाम्॥१४३ 44-16 श्री कृष्ण के एक अन्य विवाह प्रसंग में आता है कि किसी समय सिंहलद्वीप में सूक्ष्मबुद्धि का धारक शुक्ष्णरोम नामक राजा रहता था। उसे वश करने के लिए किसी समय श्री कृष्ण ने अपना दूत भेजा परन्तु दूत ने वापस आकर उसके प्रतिकूल होने की खबर दी तथा साथ में यह भी कहा कि उसके उत्तम लक्षणों से युक्त लक्ष्मणा नाम की कन्या है। तदन्तर हर्ष युक्त श्री कृष्ण बलदेव के साथ वहाँ गये। वहाँ उन्होंने स्नान के लिए समुद्र में आई हुई मृगलोचनी लक्ष्मणा को देखा। श्री कृष्ण के रूप पर वह मोहित हो गई। श्री कृष्ण ने यहाँ महाशक्तिशाली सेनापति द्रुमसेन को युद्ध में हराकर उस रूपवती लक्ष्मणा का हरण कर लिया। द्वारका में आकर उसके साथ विधिपूर्वक विवाह किया एवं उसे महल दे रमण करने लगे। द्रुमसेनं महावीर्यं हत्वा सेनापतिं युधि। हृत्वा चेतः स्वरूपेण रूपिणीमहरत्पुनः॥४४४४-२३ - उसी समय सुराष्ट्र देश में एक राष्ट्रवर्धन नामक राजा था। उसके एक सुसीमा नाम की पुत्री थी जो कि उत्तम गुणों से युक्त अप्सराओं के समान लगती थी। उसके एक भाई था। जिसका नाम नमुचि था, वह अत्यन्त पराक्रमी था। एक दिन युवराज नमुचि तथा उसकी बहिन सुसीमा स्नान करने समुद्र तट पर आये। इधर नारदमुनि ने श्री कृष्ण को 173=