Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ पुराणकार ने शिशुपाल का निरूपण रुक्मिणी हरण प्रसंग में ही किया है। जब श्री कृष्ण ने रुक्मिणी का हरण कर लिया, उस समय रुक्मिणी का भाई रुक्मी तथा शिशुपाल दोनों धीर-वीर बड़ी शीघ्रता से रथों पर सवार होकर श्री कृष्ण व बलदेव का सामना करने पहुंच जाते हैं। पुराणकार ने उन्हें अपनी सेना के स..युद्ध के लिए उद्यत होने का बड़ा सुन्दर वर्णन किया है कि-साठ हजार रथों, दस हजार हाथियों, वायु वेगशाली तीन लाख घोड़ों और खड्ग, चक्र, धनुष हाथ में लिए कई लाख पैदल सिपाहियों के साथ दिशाओं को ग्रस्त करते हुए दोनों वीर उनकी निकटता को प्राप्त हाए। रथैः षष्टिसहस्रेस्तैः करिणामयुतेन च। .. त्रिभिः शतसहस्त्रैश्च बाजिनां वायुरंहसाम्॥ .. . असिचक्रधनुः पाणिबहुलक्षपदातिभिः।। ग्रसमानौ दिशः शेषा निकटत्वमुपागतौ॥२५८४२/८१-८२ ऐसी विशाल सेना देखकर रुक्मिणी अत्यन्त ही व्याकुल हो गई। इस पर श्री कृष्ण ने उसे समझाया कि मुझ पराक्रमी के रहते हुए दूसरों की संख्या बहुत होने पर क्या हो सकता है? तदनन्तर श्री कृष्ण व बलदेव ने अपने रथ घुमाकर सेना के अभिमुख कर दिये। रोष से भरे हुए भयंकर सिंह के समान शूर-वीर श्री कृष्ण ने शिशुपाल को तथा बलदेव ने भयंकर आकार को धारण करने वाले भीष्म पुत्र राजा रुक्मी का सामना किया। द्वन्द्वयुद्ध में श्री कृष्ण ने अपने बाण के द्वारा यश के साथ शिशुपाल का ऊँचा मस्तक दूर गिराया तथा बलदेव ने रथ के साथ रुक्मी को इतना जर्जर कर दिया कि उसके प्राण ही शेष रह गये। द्वन्द्व-युद्धे शिरस्तुगं शिशुपालस्य पातितम्। विष्णुना यशसा साकं सायकेन विदूरतः। हली जर्जरितं कृत्वा रथेन सह रुक्मिणम्। प्राणशेषमपाकृत्य कृती कृष्णयुतो ययौ // 15942/94-95 उपर्युक्त विवेचनानुसार हरिवंशपुराण में श्री कृष्ण द्वारा शिशुपाल वध का प्रसंग आता है परन्तु यह वध रुक्मिणी-हरण के पश्चात् श्री कृष्ण के साथ युद्ध में होता है। जबकि सूरसागर में शिशुपाल-वध युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में श्री कृष्ण के सुदर्शन चक्र से होता है। हरिवंशपुराण में शिशुपाल द्वारा बारात लेकर कुण्डिनपुर आना तथा श्री कृष्ण के साथ युद्ध करना आदि घटनाएँ सूरसागर के साम्य हैं परन्तु जिनसेनाचार्य ने शिशुपाल का वध भी वहाँ बताकर इस घटना को नवीन रूप प्रदान किया है। हरिवंशपुराण का युद्ध-वर्णन सूरसागर से अपेक्षाकृत रोचक बन पड़ा है। कवि का सेना-वर्णन अतिशयोक्ति पूर्ण लग रहा है। पुराणकार ने शिशुपाल के सेनापति शाल्व तथा भाई दन्तचक्र के साथ =18