Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ जब वह बड़ा हुआ तो रुक्मिणी के पिता ने रुक्मिणी का विवाह शिशुपाल से तय किया। शिशपाल बारात लेकर रुक्मिणी से विवाह करने हेतु कुण्डिनपुर गया परन्तु वहाँ. श्री कृष्ण ने रुक्मिणी का हरण कर लिया। जब उसे यह ज्ञात हुआ तब वह सेना लेकर श्री कृष्ण के पीछे गया। वहाँ श्री कृष्ण व बलराम के साथ उसका भयंकर युद्ध हुआ परन्तु उसे पराजित कर श्री कृष्ण ने यह कहा कि मैं तुझे एक बार और क्षमा करता हूँ। पुरुष का रणक्षेत्र में भागना भी मरने जैसा है। उसी दिन से शिशुपाल श्री कृष्ण से और भी शत्रुता रखने लगा।१५३ 'ब' तदुपरान्त इन्द्रप्रस्थ नरेश युधिष्ठिर ने श्री कृष्ण की सलाह पर राजसूय यज्ञ करने का निश्चय किया। उसी समय श्री कृष्ण द्वारिका से नाना प्रकार के उपहार एवं अपनी विशाल सेना लेकर इन्द्रप्रस्थ आये। युधिष्ठिर ने उनका भव्य स्वागत किया तथा यज्ञ की आज्ञा माँगी। श्री कृष्ण की आज्ञा से युधिष्ठिर ने अपने ब्राह्मणों से यज्ञ-दीक्षा लेकर राजसूय यज्ञ प्रारम्भ किया। युधिष्ठिर ने अपने सभी भाईयों व सम्बन्धियों को अलगअलग कार्यों पर नियुक्त किया। श्री कृष्ण ने ब्राह्मणों के चरण धोने का कार्य स्वीकार किया तथा वे स्वेच्छा से ब्राह्मणों के पद-कदम धोने लगे। युधिष्ठिर के इस राजसूय यज्ञ में अनेक देशों के. राजा-महाराजा व विप्र-गण आने लगे। नारदमुनि भी वहाँ पर आये तथा वे श्री कृष्ण की महिमा का चिन्तन कर यज्ञ में बैठ गये। उसी समय भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर से वहाँ पर उपस्थित सभी राजाओं से अर्घ्य निवेदन करके उनकी पूजा करने के लिए कहा तथा जो सभी राजाओं में श्रेष्ठ एवं शक्तिशाली है, उसको पहले अर्घ्य समर्पित कर अग्रपूजा करने के लिए कहा। यह सुनकर युधिष्ठिर ने भीष्म पितामह से पूछा कि-इन राजाओं में श्रेष्ठ एवं प्रथम पूजने योग्य कौन है? इस पर भीष्म पितामह ने कहा कि श्री कृष्ण का ही प्रथम पूजन होना चाहिए।५४ तदनुसार युधिष्ठिर ने श्री कृष्ण की अग्रपूजा की। श्री कृष्ण की इस अग्रपजा को देखकर चेदिराज शिशुपाल भरी सभा में भीष्म व युधिष्ठिर को उलाहना देकर श्री कृष्ण से आक्षेपपूर्ण वचन कहने लगा कि यहाँ पर अन्य राजाओं के होते हुए वृष्णी-वंश श्री कृष्ण राजाओं के समान पूजा का अधिकारी नहीं है। शिशुपाल के श्री कृष्ण के प्रति ऐसे वचन सुनकर युधिष्ठिर उसके पास गये एवं उसे समझाने लगे। भीष्म ने भी उसे समझाया कि-श्री कृष्ण हमारे लिए पूजनीय हैं। परन्तु श्री कृष्ण के पूजन समाप्त होने के बाद शिशुपाल अन्य अपने सहयोगियों सहित युद्ध करने के लिए उद्यत हो गया। तब श्री कृष्ण ने क्रोधित होकर शिशुपाल का सिर सुदर्शन-चक्र से काट दिया। तत्पश्चात् युधिष्ठिर ने अपना राजसूय यज्ञ पूर्ण किया। वैर भाव सुमिरयौ सिसुपाल। ताहि राजसू मैं गोपाल॥