Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ कृष्ण को ललकारा। कृष्ण और प्रद्युम्न में भयंकर युद्ध हुआ। तब नारद ने आकर प्रद्युम्न का परिचय दिया। सभी बड़े प्रसन्न हुए। नगर में उत्सव मनाया गया। ततः प्रणतमाथुिष्य प्रद्युम्नं प्रमदी हरिः। आनन्दाश्रुपरीताक्षः समयोजयदाशिषात: रुक्मिणीजाम्बवत्यौ ते जातपुत्रसमागमे। तदाचीकरतां तोषादुत्सवं वत्सवत्सले॥५३ 'अ' 47/133-135 उपर्युक्त विवेचनानुसार दोनों ही कवियों ने श्री कृष्ण पुत्र प्रद्युम्न का वर्णन किया है। दोनों ही कृतियों में उसे रुक्मिणी पुत्र स्वीकार किया है। प्रद्युम्न का अपहरण, उसकी आकाशगामी विद्याएँ तथा पालन-पोषण करने वाली माँ की अनुरक्ति इत्यादि प्रसंगों में साम्यता दिखाई देती हैं। सूरसागर में यह प्रसंग मात्र दो पदों में वर्णित है जबकि हरिवंशपुराण में इस कथा को विस्तृत स्वरूप प्रदान किया है। पुराणकार ने रुक्मिणी का विलाप, प्रद्युम्न का रूप सौन्दर्य, उसका युद्ध-कौशल, उसके द्वारा अनेक विद्याओं की प्राप्ति, उदधिकुमारी के साथ उसका विवाह, कृष्ण-प्रद्युम्न युद्ध, नारद द्वारा परिचय एवं उसका राजसुख इत्यादि विविध प्रसंगों को नवीनता के साथ चित्रित किया है। यह प्रसंग हरिवंशपुराण की मौलिकता है। शिशुपाल वध : श्री कृष्ण द्वारा किये गये कार्यों में शिशुपाल वध प्रसंग भी विशेष महत्त्वपूर्ण है। श्रीमद्भागवत पुराण में शिशुपाल के बारे में वृत्तान्त आता है कि वह चेदिराज दमघोष व श्रुतश्रवा का पुत्र था। श्रुतश्रवा श्री कृष्ण की बुआ थी। जन्म के समय उसके तीन आँखें व.चार हाथ थे। अतः इसके माता-पिता चिन्तित हुए एवं इसे त्यागने का विचार किया परन्तु उस समय आकाशवाणी हुई कि इस शिशु का पालन करो; यह बहुत ही सम्पन्न व पराक्रमी होगा। अभी इसकी मृत्यु नजदीक नहीं है। इसका वध करने वाला संसार में पैदा हो गया है। यह उसी के हाथों से मृत्यु का वरण करेगा। यह सुन शिशुपाल की माता ने पूछा कि इसकी मृत्यु किसके हाथों होगी। तब अदृश्य-भूत ने यह कहा किइस बच्चे का जिसके.द्वारा गोद में लेने से इसके दो हाथ पृथ्वी पर गिर जाएँ एवं तीसरा नेत्र ललाट में छिप जाय, उसी के हाथों से इसकी मृत्यु होगी। तदुपरान्त सूचना मिलने पर श्री कृष्ण एवं बलराम अपनी बुआ श्रुतश्रवा को मिलने चेदि राज्य में गये। वहाँ पर श्रुतश्रवा ने श्री कृष्ण की गोद में अपने पुत्र को डाल दिया। श्री कृष्ण की गोद में बच्चे को डालते ही उसके दोनों हाथ गिर पड़े एवं तीसरा नेत्र मस्तक में समा गया। इस पर भयभीत हो श्रुतश्रवा ने श्री कृष्ण से यह वर देने का अनुरोध किया कि वें उसके सभी अपराध क्षमा कर देंगे। तब श्री कृष्ण ने श्रुतश्रवा को यह वरदान दिया कि वे इसके सौ अपराध क्षमा कर देंगे। 1776