Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ फुआ द्वारा सहायता व इसी प्रसंग में श्री कृष्ण द्वारा शिशुपाल वध१३७ इत्यादि घटनाएँ नवीनता को लिए हुए है। जिनसेनाचार्य ने इस प्रसंग को विशदता के साथ विवेचित किया है। कवि ने युद्ध वर्णन के सजीव दृश्य उपस्थित किए हैं। वर्णन-कौशल एवं रोचकता की दृष्टि से हरिवंशपुराण का निरूपण अपेक्षाकृत ज्यादा सुन्दर बन पड़ा है। सूरसागर में रुक्मिणी हरण, द्वारिका-आनन्दोत्सव का जो वर्णन मिलता है, उसका हरिवंशपुराण में अभाव रहा है। श्री कृष्ण के अन्य विवाह :- श्रीमद्भागवतपुराण के कथानुसार सूरसागर में महाकवि सूर ने श्री कृष्ण की आठ पटरानियों का उल्लेख किया है। इसमें सत्यभामा, जाम्बवती, कालिन्दी, मित्रविन्दा, सत्या, भद्रा, लक्ष्मणा एवं रुक्मिणी के नाम आते हैं। श्री कृष्ण ने इनके साथ अलग-अलग प्रसंगों में विवाह किया उसका कवि ने स्पष्ट उल्लेख किया है। जाम्बवती एवं सत्यभामा के साथ श्री कृष्ण के विवाह प्रसंग में स्यमन्तक मणि की कथा आती है जो निम्न प्रकार है विघ्न के पुत्र सत्राजित ने सूर्य से एक दिव्य मणि प्राप्त की थी जो स्यमन्तक-मणि के रूप में जानी जाती थी। उस मणि को श्री कृष्ण प्राप्त करना चाहते थे परन्तु वह उन्हें न मिली। एक दिन सत्राजित का भाई प्रसेन उस मणि को पहनकर शिकार खेलने गया। वहाँ पर एक शेर ने उसे मार गिराया एवं वह मणि को लेकर चला गया। ऋक्षराज जाम्बवंत ने उस शेर को मारकर, वह मणि हमेशा के लिए अपनी गुफा में रख दी। उधर सत्राजित ने श्री कृष्ण पर अपने भाई प्रसेन-वध तथा मणि लेने का आरोप लगाया, तब श्री कृष्ण वन में गये तथा जाम्बवंत से युद्ध कर उसे हराया और उसकी जाम्बवती के साणा स्यमन्तक मणि को प्राप्त किया। श्री कृष्ण ने यह मणि सत्राजित को दी। सत्राजित ने श्री कृष्ण पर लगाये आरोप से लज्जित होकर अपनी कन्या सत्यभामा का विवाह श्री कृष्ण के साथ कर दिया। इस प्रकार श्री कृष्ण ने जाम्बवती व सत्यभामा को प्राप्त कर उसे अपनी रानियाँ बनाई। . हरि दरसन सत्राजित आयौ। लोगनि जान्यौ आदित आवत हरि सो जाइ सुनायौ। जांबवती समेत मनि दे पुनि अपनौ रोष छमायौ। मनि सत्राजित को प्रभु दीन्ही, रहयौं सु सीस नवाइ। सत्यभामा समेत लै आयो मनि काँ हरि सिर नाइ॥१३८ / . रुक्मिणी, जाम्बवती तथा सत्यभामा के अलावा श्री कृष्ण की पाँच पटरानियों का उल्लेख करते हुए सूर ने लिखा है कि हरि के स्मरण करने से श्री कृष्ण ने कालिन्दी को वर दिये तथा उसके साथ पाणि-ग्रहण कर उसे सब प्रकार का सुख दिया। जब "मित्रविन्दा" 171