Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ तदुपरान्त उस विप्र ने द्वारिका में श्री कृष्ण को रुक्मिणी का पत्र देकर उसका संदेशा कह सुनाया कि सिंह को दुर्बल देखकर उसका भोजन सिंयार ले जा रहा है। आज हंस के भाग को कौआ ले जा रहा है। हे मधुसुदन! आप जल्दी उठो, रथ चढ़ाकर. कुण्डिनपुर का प्रयाण करो। अगर शिशुपाल के साथ रुक्मी ने रुक्मिणी का हाथ दे दिया तो वह अग्नि में स्नान कर लेगी। तातै में द्विज बेगि पठायो, नेम धरम मरजादा जात। सूरदास सिसुपाल पानि गहै, पावक रचौं करौं अपघात // 131 श्री कृष्ण ने तत्काल रथ जोड़कर ब्राह्मण के साथ कुण्डिनपुर की तरफ प्रयाण किया। जाते समय बलभद्र से कहा कि आप सेना लेकर कुण्डिनपुर की तरफ चढ़ाई करो, मैं जल्दी वहाँ पहुँच रहा हूँ। वहाँ पहुँच कर कृष्ण ने उस ब्राह्मण के साथ रुक्मिणी को समाचार पहुँचाया कि वे वहाँ आ गये हैं। रुक्मिणी ने उपर्युक्त समाचार सुनकर अत्यन्त आनन्द की अनुभूति की। वह मन ही मन विचार करने लगी कि अब मेरा नंदनंदन श्री कृष्ण से मिलन कब होगा। रुक्मिणी योजनानुसार अपनी सखियों के साथ पूजा करने हेतु देवी मन्दिर में आई। रुक्मी ने उसकी रक्षा के लिए कई सैनिकों को साथ भेजा। रुक्मिणी ने मन्दिर में जाकर देवी की पूजा कर उससे श्री कृष्ण को वर देने का वर माँगा। प्रसाद लेकर जैसे ही रुक्मिणी देवी मन्दिर से बाहर आई, उसी समय श्री कृष्ण वहाँ आयें एवं उसे अपने रथचढ़ाकर हर ले गये। पाइ प्रसाद अंबिका मन्दिर रुक्मिणी बाहर आई। सुभट देखि सुन्दरता मोहे, धरनि गिरे मुरझाई॥ इहिँ अंतर जादोपति आए रुकमिनि रथ बैठाई।१३२ उधर शिशुपाल भी अपनी सेना सहित बारात लेकर पहले ही कुण्डिनपुर पहुँच चुका था। जब उसे कृष्ण द्वारा रुक्मिणी हरण की जानकारी मिली, तब उसने द्रतचक्र तथा वाराणसी के राजा के साथ श्री कृष्ण का पीछा किया। दोनों ओर से भयंकर युद्ध हुआ। सूरसागर में इस युद्ध का कवि ने बड़ा रोचक वर्णन किया है साँग कहे झलक चहुँ दिसा चपला चमक, गज गरज सुनत दिग्गज डराए। स्याम बलराम सुधि पाइ सन्मुख भए, बान बरषा लगे करब सारे॥ राम हल मुसल संभारी धारयौ बहुरि, पेलि के रथ सुभट बहु संहारे।