Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
View full book text
________________ विहसति प्यारी समीप, घन दामिनि संग रूप, कंठ गहति कहति कंत, झूलन की साधा। 2 / / यहाँ श्री कृष्ण को मनाने हेतु गोपियों के मनोभाव का बड़ा ही स्वाभाविक चित्रण हुआ है। एक प्रसंग में कृष्ण राधा को साथ झुला रहे हैं। उनका झूला ऊँचा पहुँच जाता है। राधा अत्यन्त ही डर जाती है, वह झूला रोकने के लिए प्रार्थना करती है। परन्तु श्री कृष्ण और भी जोर से झूले को ऊँचा बढ़ाते ही जाते हैं। राधा डर कर कृष्ण को कसकर पकड़ लेती है। झूलते हुए राधा-कृष्ण के सौन्दर्य का कवि ने बड़ा ही मनोरम चित्रण किया है। झूलत विह्वल स्याम स्यामा, सीस मुकुलित केस। . . ताटंक तिलक सुदेस झलकत, खचित चूनी लाल। नव अकृत विकृत बदन प्रहसित, कमल नैन बिसाल॥ करज मुद्रिका किंकिनी कटि चाल गज गति बाल। सूर मुररिपु रंग रंगे, सखी सहित गुपाल॥३ ___ इतना ही नहीं झूला-झूलते समय आसपास के सुरम्य वातावरण के निरूपित करने में भी कवि ने कोई कमी नहीं रखी है। सुन्दर यमुना तट, झरमर-झरमर बरसता मेह, बादलों के बीच चमकती बिजली, मोर, पपैहै, दादुर के मीठे स्वर इत्यादि समस्त प्राकृतिक सौन्दर्य के भावानुकूल चित्र अंकित किए हैं। सूरसागर में यह प्रसंग भी विशदता के साथ वर्णित मिलता है। राधा के साथ कृष्ण का मिलन, उनका एक साथ झूला-झूलना, मनमोहक प्राकृतिक दृश्य, हिंडौले का अप्रतिम सौन्दर्य एवं लोकोत्तर निर्माण इत्यादि अनेक घटनाओं का इसमें विवेचन मिलता है। झूला-झूलते समय राधा के नूपुरों की ध्वनि किंकिनियों की झंकार एवं कंकणों की खन-खनाहट का भाव पूर्ण चित्रण देखिये कनक नुपुर कुनित कंकन, किंकिनी झनकार। तहँ कुवरि वृषभानु कैं, संग सौहँ नन्दकुमार॥४ चीर-हरण लीला : सूरसागर में निरूपित श्री कृष्ण की रसिक लीलाओं में चीर-हरण का प्रसंग भी उल्लेखनीय है। यह प्रसंग भागवतानुसार है परन्तु सूर ने इसे अतिरंजकता से रंग दिया है। सूर के कृष्ण अत्यन्त चंचल है। उनका मन किसी न किसी शरारत में लगा रहता है। गोपियाँ श्यामसुन्दर को पति के रूप में पाने के लिए गौरी-पति शंकर की आराधना करती हैं। वे जब स्नान करने जल में उतरती हैं उस समय में भी कृष्ण को पति के रूप में पाने की अभिलाषा करती हैं। कृष्ण उन्हें सताने के लिए जल में